इल्म इसका नहीं
उनकी गुनाहों का मैं सजायाफ्ता हो गया
बस
तारीख़ की तहरीर में इश्क़ बाग़ी हो गया
अमल किया जिस तामील को खुदा मान
निगाहों के क़ातिल का वो तो आफ़ताब निकला
खुली जुल्फों की कैद में
कतरा कतरा लहू कलमा इश्क़ लिखता चला गया
बड़ी नफ़ासत नजाकत से सँवारा था जिसे
क़त्ल ए गुनाहों में वो दिल भी शरीक हो गया
कब ऐ मासूम नूर ए अंदाज़
उनकी क़ातिल निगाहों का शिकार हो गया
खुदा को भी इसका अहसास हो ना पाया
और बिन गुनाह किये ही मैं
उनकी हसीन गुनाहों का सजायाफ्ता हो गया
सजायाफ्ता हो गया
उनकी गुनाहों का मैं सजायाफ्ता हो गया
बस
तारीख़ की तहरीर में इश्क़ बाग़ी हो गया
अमल किया जिस तामील को खुदा मान
निगाहों के क़ातिल का वो तो आफ़ताब निकला
खुली जुल्फों की कैद में
कतरा कतरा लहू कलमा इश्क़ लिखता चला गया
बड़ी नफ़ासत नजाकत से सँवारा था जिसे
क़त्ल ए गुनाहों में वो दिल भी शरीक हो गया
कब ऐ मासूम नूर ए अंदाज़
उनकी क़ातिल निगाहों का शिकार हो गया
खुदा को भी इसका अहसास हो ना पाया
और बिन गुनाह किये ही मैं
उनकी हसीन गुनाहों का सजायाफ्ता हो गया
सजायाफ्ता हो गया
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-08-2019) को " समाई हुई हैं इसी जिन्दगी में " (चर्चा अंक- 3430) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आदरणीय अनीता जी
Deleteमेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार
सादर
मनोज क्याल
सुन्दर रचना
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार
सादर
मनोज क्याल