हुनर ना आया उन्हें नज़रअंदाज़ करने का
स्वांग रचा मशरूफ होने का
पर अंदाज़ गुस्ताख़ नयनों का
दिल ए नादान संभाल ना पाया
फिसल गया
देख कायनात में जन्नत की माया
रूह लिख रही थी जैसे
हर तरफ आयतों का साया
कलमा था वो बड़ा ही पाक ए नबीज़
गुनगुना रही थी जो वो दिल ए अज़ीज़
मशगूल थी वो अपनी ही धुन में
भूल बैठी थी
दिल भी वही कही है करीब में
वही कही है करीब में
स्वांग रचा मशरूफ होने का
पर अंदाज़ गुस्ताख़ नयनों का
दिल ए नादान संभाल ना पाया
फिसल गया
देख कायनात में जन्नत की माया
रूह लिख रही थी जैसे
हर तरफ आयतों का साया
कलमा था वो बड़ा ही पाक ए नबीज़
गुनगुना रही थी जो वो दिल ए अज़ीज़
मशगूल थी वो अपनी ही धुन में
भूल बैठी थी
दिल भी वही कही है करीब में
वही कही है करीब में
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-07-2019) को "नदी-गधेरे-गाड़" (चर्चा अंक- 3392) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी
Deleteमेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए शुक्रिया
आभार
मनोज क्याल
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआदरणीय
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
सादर
मनोज
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteI really enjoyed your blog thanks for sharing.
ReplyDelete