Wednesday, July 10, 2019

पता

ठिकाने को उनकी रजामंदी क्या मिली

पता अपना मैं भूल आया उनके पते पे

अब खत लिखुँ या भेजूँ संदेशा

मशवरा कैसे करूँ इन घरोंदों से

मौसम जो बदला आशियानें का

ख्याल ही ना रहा कब छूट गए पीछे

पते बचपन के संगी यारों के

मदहोश ऐसा किया उनकी शोख अदाओं ने

मानो गुज़ारिश कर रही हो

खत एक तो लिखूँ नए ठिकाने पे

अफ़सोस मगर

मेरी नई रह गुज़र की डगर पर

पता उनका भी अधूरा था मेरी मंज़िल की राहों पर

और ना जाने कब कशिश की इस कशमश में

अपना पता भी मैं भूल आया उनके पते पर

अपना पता भी मैं भूल आया उनके पते पर

1 comment:

  1. आदरणीय शास्त्री जी

    बहुत बहुत धन्यवाद

    सादर
    मनोज

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