ज़िक्र तेरा सालों बाद आया
रह गुजर वो कौन सी थी
कारवाँ यादों का फिर साथ ले आया
रंजिश थी या कोई साजिश थी उल्फतों की
अरमानों का रंग महल सज आया
खुमार बेक़रार लाँघ दरिया की चौखट
ह्रदय रूंदन कंठ भर आया
पिपासा पपहिया भटक रहा मरुधर धाम
मृगतृष्णा पर छोड़ ना पाया
व्यथा मेरे मन की कभी
सैलाब आंसुओं का भी समझ ना पाया
अधूरा था ज़िक्र तेरा
पर यादों की वो अनमोल धरोहर
जख़्म फिर से हरा कर आया
जख़्म फिर से हरा कर आया
रह गुजर वो कौन सी थी
कारवाँ यादों का फिर साथ ले आया
रंजिश थी या कोई साजिश थी उल्फतों की
अरमानों का रंग महल सज आया
खुमार बेक़रार लाँघ दरिया की चौखट
ह्रदय रूंदन कंठ भर आया
पिपासा पपहिया भटक रहा मरुधर धाम
मृगतृष्णा पर छोड़ ना पाया
व्यथा मेरे मन की कभी
सैलाब आंसुओं का भी समझ ना पाया
अधूरा था ज़िक्र तेरा
पर यादों की वो अनमोल धरोहर
जख़्म फिर से हरा कर आया
जख़्म फिर से हरा कर आया
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22 -06-2019) को "बिकती नहीं तमीज" (चर्चा अंक- 3374) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आदरणीय अनीता जी
Deleteमेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान प्रदान करने के धन्यवाद ी
विनीत
मनोज क्याल
Wah... Jitani baar bhi padhe, utna mann aur jhum uthta hai...
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