ज़िक्र तेरा सालों बाद आया
रह गुजर वो कौन सी थी
कारवाँ यादों का फिर साथ ले आया
रंजिश थी या कोई साजिश थी उल्फतों की
अरमानों का रंग महल सज आया
खुमार बेक़रार लाँघ दरिया की चौखट
ह्रदय रूंदन कंठ भर आया
पिपासा पपहिया भटक रहा मरुधर धाम
मृगतृष्णा पर छोड़ ना पाया
व्यथा मेरे मन की कभी
सैलाब आंसुओं का भी समझ ना पाया
अधूरा था ज़िक्र तेरा
पर यादों की वो अनमोल धरोहर
जख़्म फिर से हरा कर आया
जख़्म फिर से हरा कर आया
रह गुजर वो कौन सी थी
कारवाँ यादों का फिर साथ ले आया
रंजिश थी या कोई साजिश थी उल्फतों की
अरमानों का रंग महल सज आया
खुमार बेक़रार लाँघ दरिया की चौखट
ह्रदय रूंदन कंठ भर आया
पिपासा पपहिया भटक रहा मरुधर धाम
मृगतृष्णा पर छोड़ ना पाया
व्यथा मेरे मन की कभी
सैलाब आंसुओं का भी समझ ना पाया
अधूरा था ज़िक्र तेरा
पर यादों की वो अनमोल धरोहर
जख़्म फिर से हरा कर आया
जख़्म फिर से हरा कर आया