Thursday, June 20, 2019

जख़्म

ज़िक्र तेरा सालों बाद आया

रह गुजर वो कौन सी थी

कारवाँ यादों का फिर साथ ले आया

रंजिश थी या कोई साजिश थी उल्फतों की

अरमानों का रंग महल सज आया

खुमार बेक़रार लाँघ दरिया की चौखट

ह्रदय रूंदन कंठ भर आया

पिपासा पपहिया भटक रहा मरुधर धाम

मृगतृष्णा पर छोड़ ना पाया

व्यथा मेरे मन की कभी

सैलाब आंसुओं का भी समझ ना पाया

अधूरा था ज़िक्र तेरा

पर यादों की वो अनमोल धरोहर

जख़्म फिर से हरा कर आया

जख़्म फिर से हरा कर आया

Tuesday, June 11, 2019

तमाशबीन

ए जिंदगी तेरी किताब में

हम गुमनाम हो गए

नफरतों के बाजार में

मोहब्बत के क़र्ज़दार हो गए

साँसों की रफ़्तार ने निराशा में

ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली

टूटती नब्ज़ घबरा तुझसे

लफ्जों से महरूम हो गयी

कहने लगी हैं रुख हवायेँ सभी

आ लुका छिपी के पेंच खोल दे

जुड़ जाए मेरी डोर तेरी पतंग से

पुरानी बातों की गाँठें खोल दे

मुझ जैसे तमाशबीन में

फिर मोहब्बत के रंग भरने

कोई गुमनाम शायर ही सही

ए जिंदगी तेरे कुछ पन्ने

तुझसे ही उधार खरीद

तेरी किताब के पन्नों में

फिर से हमें आबाद कर दे 

Saturday, June 1, 2019

बेपर्दा

हर पाबंदियाँ तोड़ ख़त मैंने अनेक लिखे

किस पत्ते पर भेजूँ यह समझ ना पाया 

ज़िक्र तेरा सिर्फ़ खाब्बों की ताबीर में था 

तेरी जुस्तजूं का भी दिल को पता ना था

रुमानियत भरे खतों के लफ्जों में 

डोर एक अनजानी सी बँधी थी 

पर बिन पत्ते इनकी परछाई भी बैरंगी थी 

कशिश कोई ग़ुमनाम सी छेड़ दिलों के तार 

हर खत बुन रही थी तेरे ही अक्स ए अंदाज़ 

लिए बैठे था ख़त तेरे नाम हज़ार 

उतर आया था इन खतों में 

मानों चुपके से कोई आफ़ताब  

और हौले से बेपर्दा कर गया 

रूह को मेरी सरे बाज़ार, सरे बाज़ार