बारिश बिन तेरे अधूरी हैं
भीगूँ कैसे
आँचल से तेरे दुरी हैं
बूंदों में इसके
तेरे तपिश की जमीं हैं
फूलों के कपोल पे जैसे
मोतियों सी लड़ जड़ी हैं
फ़ुहारों ने इसकी समेटी
यादों की अपनी बस्ती हैं
पर फ़लक से आसमां तक
तेरे ही रंगों की मस्ती हैं
दिल आतुर मिलने तरसे
बारिश की बूंदों में ढूंढ़े
अपने सपनों की कश्ती हैं
अपने सपनों की कश्ती हैं
भीगूँ कैसे
आँचल से तेरे दुरी हैं
बूंदों में इसके
तेरे तपिश की जमीं हैं
फूलों के कपोल पे जैसे
मोतियों सी लड़ जड़ी हैं
फ़ुहारों ने इसकी समेटी
यादों की अपनी बस्ती हैं
पर फ़लक से आसमां तक
तेरे ही रंगों की मस्ती हैं
दिल आतुर मिलने तरसे
बारिश की बूंदों में ढूंढ़े
अपने सपनों की कश्ती हैं
अपने सपनों की कश्ती हैं
आवश्यक सूचना :
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ReplyDeleteसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html
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