कभी अपनी तन्हाईयों में
हमें याद करना तुम
गल मिल रोयेंगे दोनों खूब
उदासी के उस आलम में
दिल की किताब खोले रखना तुम
लहू से रंगें अक्षरों में
सूखे गुलाब तलाशेंगे हम तुम
अनमोल हो जायेंगे यादों के हर सबब
मिलेंगे जब दो बिछड़े हमसफ़र
ना तुम कुछ कहना ना मैं कुछ कहूँगा
इस इंतज़ार को सिर्फ आँखों से बयाँ करेंगे हम तुम
टूटे हुए अरमानों को
हर अहसासों में जिन्दा रखेंगे हम तुम
वादा बस इतना करो तुम
अपनी तन्हाईयों में हमसे मिला करोगे तुम
हमसे मिला करोगे तुम
हमें याद करना तुम
गल मिल रोयेंगे दोनों खूब
उदासी के उस आलम में
दिल की किताब खोले रखना तुम
लहू से रंगें अक्षरों में
सूखे गुलाब तलाशेंगे हम तुम
अनमोल हो जायेंगे यादों के हर सबब
मिलेंगे जब दो बिछड़े हमसफ़र
ना तुम कुछ कहना ना मैं कुछ कहूँगा
इस इंतज़ार को सिर्फ आँखों से बयाँ करेंगे हम तुम
टूटे हुए अरमानों को
हर अहसासों में जिन्दा रखेंगे हम तुम
वादा बस इतना करो तुम
अपनी तन्हाईयों में हमसे मिला करोगे तुम
हमसे मिला करोगे तुम
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-04-2019) को "भाषण हैं घनघोर" (चर्चा अंक-3299) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'