गुमराह हो गयी राहें ख़फ़ा हो मुझसे
बीच चौराहें खड़ा रहा मग्न अपनी धुन में
ठहर गयी मंज़िलें ग़ुम हो गए रास्तें
अम्बर नीला धरा सुनहरी
ख़ोज रहा दिल मरुधर में मोती
भूल गया सागर बीच मिले हैं मोती
मन चिंतन भटक रहा गली गली
कभी चले दो कोश कभी पकड़े पगडंडी
कैसी यह विडम्बना कैसी यह पहेली
सिर्फ़ चाँदनी लग रही सखी सहेली सी
मूँद आँखे खोल दिल के छोर
गणना करने लगे मन चितचोर
किस राह पकड़ूँ मिल जाये क्षितिज का मोड़
छू लूँ अम्बर चूम लूँ पर्वत शिखर
निकाल लूँ मरुधर के सिप्पों से भी मोती
मिल जाये राहें अगर फ़िर वो अनोखी
गुमराह हो गयी थी जो कर मन चोरी
बीच चौराहें खड़ा रहा मग्न अपनी धुन में
ठहर गयी मंज़िलें ग़ुम हो गए रास्तें
अम्बर नीला धरा सुनहरी
ख़ोज रहा दिल मरुधर में मोती
भूल गया सागर बीच मिले हैं मोती
मन चिंतन भटक रहा गली गली
कभी चले दो कोश कभी पकड़े पगडंडी
कैसी यह विडम्बना कैसी यह पहेली
सिर्फ़ चाँदनी लग रही सखी सहेली सी
मूँद आँखे खोल दिल के छोर
गणना करने लगे मन चितचोर
किस राह पकड़ूँ मिल जाये क्षितिज का मोड़
छू लूँ अम्बर चूम लूँ पर्वत शिखर
निकाल लूँ मरुधर के सिप्पों से भी मोती
मिल जाये राहें अगर फ़िर वो अनोखी
गुमराह हो गयी थी जो कर मन चोरी
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