Sunday, April 7, 2019

बग़ावत

धैर्य रख धीरज धर

आँसुओं की बग़ावत में

नयनों को शामिल मत कर

गुजर जायेगा यह पल भी

बस तम में उजाले की प्रार्थना कर

तुम जैसे विरलों की कैसी यह रुन्दन पुकार हैं

अश्क तो कमजोरों की पहचान हैं

चाहें जितने भी चले जुबाँ के बाण

हावी मत होने दो तुम अपने जज़्बात

एक पल के लिए विवेक को बना लो

अपने समर का हथियार

जीत जाओगें रण के हर मैदान

बग़ावत कर विद्रोह कर अपने जज्बातों के ख़िलाफ़

अपने जज्बातों के ख़िलाफ़   

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