Tuesday, April 16, 2019

खामोश लब

ख़ामोशियों को मैंने नए अंदाज़ दे दिए

लफ्ज़ जो जुबाँ पे आ ना पाए

उन्हें नए मुक़ाम दे दिए

दिलचस्प हो गयी इशारों की बात

भाषा की जगह आ गए दिलों के मुक़ाम

मौन लफ्जों के ज़िक्र में

बस गयी दिलों के रूहों की किताब 

कुछ लफ्ज़ फ़लसफ़ों से 

कुछ बंद लिफाफों से निकल

जोड़ आये दिलों से दिलों के तार

बेफिक्र इशारों की मन मर्जियाँ

हटा रुख से नक़ाब 

खामोश लबों से क़त्ल कर आयी सरेआम

क़त्ल कर आयी सरेआम

1 comment:

  1. वाह। बहुत ही सुन्दर कविता।

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