Wednesday, March 6, 2019

दर्द की लेखनी

लेखनी दर्द की ताबीर बन गयी

अर्थहीन भावनावों की जागीर बन गयी

किस करवट पलटू पन्नों को

किताब अश्कों से भारी हो गयी

जुदा रूह से जो साँसे हुई

हर पन्ने बदरंगी जुबानी हो गयी

रक्त के कतरे से लिखी सजी कहानी

गुमनामी की गलियों में खो गयी

हौले हौले चलती लेखनी कुछ ऐसा लिख गयी

मयखानों से दिलों का नाता जोड़ गयी

दर्द जहाँ अल्फाजों में  सज

महफ़िल की शान बन गयी

लेखनी दर्द की ताबीर बन गयी

अर्थहीन भावनावों की जागीर बन गयी 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.03.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3267 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    ReplyDelete