कल जब आईना देखा तब यह अहसास हुआ
वक़्त कितनी रफ़्तार से बदल गया
मन चिंतन तन वंचित विग्रह कर उठा
यादों के गलियारों में यह कैसा सन्नाटा पसर गया
कारवाँ जो साथ जुड़ा था कब का बिछड़ गया
पथरों के शहर में
बस एक मूकदर्शक बन रह गया
यूँ लगा मानों कितनी सदियाँ गुजर गयी
रंगत क़ायनात की फ़िज़ा संग अपने बदल गयी
सब था पास मगर सब्र ना था अब पास मगर
रौशनी से जैसे छन रही तम की माया नजर
एक अजनबी ख़ामोशी के मध्य
टूट रहे थे अब झूठे तिल्सिम के साये
रूबरू हक़ीक़त पहचान डर गया मन बाबरा
निहारु ना अब कभी दर्पण
लगने लगा यह जीवन अभिशाप कामना
लगने लगा यह जीवन अभिशाप कामना
वक़्त कितनी रफ़्तार से बदल गया
मन चिंतन तन वंचित विग्रह कर उठा
यादों के गलियारों में यह कैसा सन्नाटा पसर गया
कारवाँ जो साथ जुड़ा था कब का बिछड़ गया
पथरों के शहर में
बस एक मूकदर्शक बन रह गया
यूँ लगा मानों कितनी सदियाँ गुजर गयी
रंगत क़ायनात की फ़िज़ा संग अपने बदल गयी
सब था पास मगर सब्र ना था अब पास मगर
रौशनी से जैसे छन रही तम की माया नजर
एक अजनबी ख़ामोशी के मध्य
टूट रहे थे अब झूठे तिल्सिम के साये
रूबरू हक़ीक़त पहचान डर गया मन बाबरा
निहारु ना अब कभी दर्पण
लगने लगा यह जीवन अभिशाप कामना
लगने लगा यह जीवन अभिशाप कामना