प्रबल हो अगर इच्छा शक्ति
हिमालय की भी नहीं कोई हस्ती
धड़क रही हो ज्वाला जब दिलों में
आतुर उतनी तब होती जीतने की प्रवृति
दौड़ रहा हो लहू जब जूनून बन
द्वंद कैसे ना फिर मस्तिष्क में हो
आवेग इसका जो संग्राम मचाये
हृदय ललकार जोश ऐसा भर जाए
आगाज़ समर जीत से
एक नया अध्याय रचत जाए
कर्मठ हो जब ऐसी लगन भक्ति
वरदान बन जाती हैं तब सम्पूर्ण सृष्टि
रूह से मंज़िल फिर दूर नहीं
नामुमकिन सी फिर कोई सुबह नहीं
प्रबल इच्छा शक्ति के आगे
हिमालय का भी कोई मौल नहीं
कोई मौल नहीं
हिमालय की भी नहीं कोई हस्ती
धड़क रही हो ज्वाला जब दिलों में
आतुर उतनी तब होती जीतने की प्रवृति
दौड़ रहा हो लहू जब जूनून बन
द्वंद कैसे ना फिर मस्तिष्क में हो
आवेग इसका जो संग्राम मचाये
हृदय ललकार जोश ऐसा भर जाए
आगाज़ समर जीत से
एक नया अध्याय रचत जाए
कर्मठ हो जब ऐसी लगन भक्ति
वरदान बन जाती हैं तब सम्पूर्ण सृष्टि
रूह से मंज़िल फिर दूर नहीं
नामुमकिन सी फिर कोई सुबह नहीं
प्रबल इच्छा शक्ति के आगे
हिमालय का भी कोई मौल नहीं
कोई मौल नहीं
कर्मठ हो जब ऐसी लगन भक्ति
ReplyDeleteवरदान बन जाती हैं तब सम्पूर्ण सृष्टि...दृढ इच्छाशक्ति का सटीक आंकलन
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-01-2019) को "कुछ अर्ज़ियाँ" (चर्चा अंक-3210) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
उत्तरायणी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
This was great to read thank you
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