Monday, January 14, 2019

इच्छा शक्ति

प्रबल हो अगर इच्छा शक्ति

हिमालय की भी नहीं कोई हस्ती

धड़क रही हो ज्वाला जब दिलों में

आतुर उतनी तब होती जीतने की प्रवृति

दौड़ रहा हो लहू जब जूनून बन

द्वंद कैसे ना फिर मस्तिष्क में हो

आवेग इसका जो संग्राम मचाये

हृदय ललकार जोश ऐसा भर जाए

आगाज़ समर जीत से

एक नया अध्याय रचत जाए

कर्मठ हो जब ऐसी लगन भक्ति

वरदान बन जाती हैं तब सम्पूर्ण सृष्टि

रूह से मंज़िल फिर दूर नहीं

नामुमकिन सी फिर कोई सुबह नहीं

प्रबल इच्छा शक्ति के आगे

हिमालय का भी कोई मौल नहीं

कोई मौल नहीं 

3 comments:

  1. कर्मठ हो जब ऐसी लगन भक्ति
    वरदान बन जाती हैं तब सम्पूर्ण सृष्टि...दृढ इच्‍छाशक्‍ति का सटीक आंकलन

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-01-2019) को "कुछ अर्ज़ियाँ" (चर्चा अंक-3210) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    उत्तरायणी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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