उम्र तो सिर्फ़ और सिर्फ़ एक फ़साना हैं
चेहरे की झुर्रियाँ ही सिर्फ़ वक़्त का अफ़साना हैं
फ़लसफ़ा लिखा जिसने इन साँसों पर
परवाज़ भरती वो गगन खाब्बों पर
आईना तो सिर्फ़ इसका एक बहाना हैं
उम्र की दहलीज़ मानो फ़रेब का खज़ाना हैं
रंगों की उल्फ़त इसका ताना बाना हैं
फ़ितरत कभी इसने बदली नहीं
धड़कनों से यारी इसकी कभी जमी नहीं
रूह तो सिर्फ़ इसका एक मुखौटा हैं
हर पड़ाव पर मगर एक नया संदेशा हैं
जी लो जी भर पल दो पल यहाँ
क्योंकि उम्र के बदलते आसमां में
कल का क्या भरोसा हैं कल का क्या भरोसा हैं
चेहरे की झुर्रियाँ ही सिर्फ़ वक़्त का अफ़साना हैं
फ़लसफ़ा लिखा जिसने इन साँसों पर
परवाज़ भरती वो गगन खाब्बों पर
आईना तो सिर्फ़ इसका एक बहाना हैं
उम्र की दहलीज़ मानो फ़रेब का खज़ाना हैं
रंगों की उल्फ़त इसका ताना बाना हैं
फ़ितरत कभी इसने बदली नहीं
धड़कनों से यारी इसकी कभी जमी नहीं
रूह तो सिर्फ़ इसका एक मुखौटा हैं
हर पड़ाव पर मगर एक नया संदेशा हैं
जी लो जी भर पल दो पल यहाँ
क्योंकि उम्र के बदलते आसमां में
कल का क्या भरोसा हैं कल का क्या भरोसा हैं
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (14-01-2019) को "उड़ती हुई पतंग" (चर्चा अंक-3216) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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लोहड़ीःमकरक संक्रान्ति (उत्तरायणी) की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ुितरत...फरेब...फसाना को अच्छी तरह गूंथा है आपने
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