Monday, January 7, 2019

एक लहर

पतों की सरसराहट फूलों की मुस्कराहट

दस्तक धड़कनों को यह दे रही

कुछ अर्ज़ियाँ अभी मुक़म्मल होनी बाकी हैं

आयतों में मोहब्बत के दीदार होने अभी बाकी हैं

गुजरती शामों के ढ़लती रातों के पैगाम अभी बाकी हैं

वियोग की तपिश में जल रही रूह को

सकून की छावं अभी बाकी हैं

बस एक पल को ठहर जाये यह पल

हसरतों की मंज़िल में कुछ फ़ासले ही बाकी हैं

उतर आनेवाला हैं चाँद धरा पर

उखड़ती साँसों में यह खाब्ब अभी बाकी हैं

दफ़न कई शिकायतों के पन्ने अभी खुलने बाकी हैं

डूबा ले जाने को एक लहर अभी आनी बाकी हैं

एक लहर अभी आनी बाकी हैं 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-01-2019) को "कुछ अर्ज़ियाँ" (चर्चा अंक-3210) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    नववर्ष-2019 की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह बहुत सुंदर

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