पतों की सरसराहट फूलों की मुस्कराहट
दस्तक धड़कनों को यह दे रही
कुछ अर्ज़ियाँ अभी मुक़म्मल होनी बाकी हैं
आयतों में मोहब्बत के दीदार होने अभी बाकी हैं
गुजरती शामों के ढ़लती रातों के पैगाम अभी बाकी हैं
वियोग की तपिश में जल रही रूह को
सकून की छावं अभी बाकी हैं
बस एक पल को ठहर जाये यह पल
हसरतों की मंज़िल में कुछ फ़ासले ही बाकी हैं
उतर आनेवाला हैं चाँद धरा पर
उखड़ती साँसों में यह खाब्ब अभी बाकी हैं
दफ़न कई शिकायतों के पन्ने अभी खुलने बाकी हैं
डूबा ले जाने को एक लहर अभी आनी बाकी हैं
एक लहर अभी आनी बाकी हैं
दस्तक धड़कनों को यह दे रही
कुछ अर्ज़ियाँ अभी मुक़म्मल होनी बाकी हैं
आयतों में मोहब्बत के दीदार होने अभी बाकी हैं
गुजरती शामों के ढ़लती रातों के पैगाम अभी बाकी हैं
वियोग की तपिश में जल रही रूह को
सकून की छावं अभी बाकी हैं
बस एक पल को ठहर जाये यह पल
हसरतों की मंज़िल में कुछ फ़ासले ही बाकी हैं
उतर आनेवाला हैं चाँद धरा पर
उखड़ती साँसों में यह खाब्ब अभी बाकी हैं
दफ़न कई शिकायतों के पन्ने अभी खुलने बाकी हैं
डूबा ले जाने को एक लहर अभी आनी बाकी हैं
एक लहर अभी आनी बाकी हैं
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-01-2019) को "कुछ अर्ज़ियाँ" (चर्चा अंक-3210) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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नववर्ष-2019 की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत सुंदर
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