Monday, December 24, 2018

यादों की अलमारी

कुछ यादें नयी सुहानी

कुछ यादें पुरानी कहानी

सहेज लूँ

किताब बना लूँ

खोलू जब यादों की अलमारी

छलक आये नयना

बिखरने लगे यादें जुबानी

रंगों की बरसात में

महक उठे बगीया सारी

सँजोयी हुई वो यादें

कुछ नादानी कुछ आपबीती

कुछ मधुर गीतों से

कुछ बेसुरे तानों से सजी

खोलू फ़िर वो हृदय राज

गूँज उठे यादों की अलमारी

गूँज उठे यादों की अलमारी 

Thursday, December 6, 2018

आत्म मंथन

मस्तिष्क शून्य चेतना लुप्त

रूह नदारद ख़ुदा विचारत

जग मिथ्या मृगतृष्णा बिसारत

भटकत मन उद्वेगिन नयन

भाव करत द्वन्द चित करत सुमिरन

बिखरत हर भँवर बरसत लहू रंग

बिमुख होत चलत अशांत तन

काल निशा करत फ़िरत भ्रमर

लगत ग्रहण अस्त होवत जाय दिवाकर

समय प्रहर करत तांडव

विचलित होय तरुण राग फ़िरत जाय

करुण रास गला रुँधत जाय

ठगत जाय छलत जाय

आत्म मंथन जौहर बलि चढ़त जाय

जौहर बलि चढ़त जाय

Wednesday, December 5, 2018

गूँगी

सब कुछ हैं पास फ़िर भी अकेला हूँ

जिंदगी की भीड़ में तन्हा खड़ा हूँ

आँसू भी अब तो लगे पराये से हैं

रूह भी जिस्म से जैसे जुदा जुदा हैं

हाथों की लकीरें अधूरी अधूरी सी हैं

किस्मत मानो जैसे गहरी निंद्रा सोई हैं

साज़िश ना जाने कौन सी छिपी हैं

हर मुक़म्मल प्रार्थना भी मानों अधूरी सी हैं

शायद खुदगर्ज़ बन खुदा भी गूँगी बन सोई हैं

गूँगी बन सोई हैं

दुहाई

खुदगर्ज़ हैं अगर तू ए ख़ुदा

तो मैं भी अधूरे सपनों की ताबीर लिए खड़ा हूँ

जंग छिड़ी हैं आज हम दोनों बीच

क्या फ़र्क पड़ता हैं

किस्मत जो तूने लिखी नहीं

फ़िर भी अधूरी हाथों की लकीरें कर्म से पीछे हटती नहीं

मायूस हूँ मैं ए ख़ुदा

पर लाचार नहीं

जीत आज तू मुझसे सकता नहीं

आगे बढ़ते मेरे कदमों को रोक सकता नहीं

स्वाभिमान की पराकाष्ठा आज तेरे अहंकार से टकराई हैं

देख मेरे बुलंद हौसलों को

खड़ा हो जा तू भी मेरे संग

वक़्त भी आज दे रहा यह दुहाई हैं

दे रहा यह दुहाई हैं



Thursday, November 8, 2018

तस्वीर

तस्वीर तेरी धुँधली हो गयी

या मेरे आँखों की रोशनी मंद हो गयी

छूट गयी यारी जो तेरी गलियों से

दूर हो गयी नजरें मेरी तेरी चाहतों से

बिन सप्तरंगी रंगों के आँगन में

खोये हुए ख्यालों की चादर में

हल्की हल्की मध्यम रोशनी के सायों में

जलते बुझते चाहतों के अँगारों में

आँख मिचौली खेल रही तस्वीर तेरी

मेरी बोझिल होती आँखों से

टूट ना जाये तस्वीरों का यह बंधन

टटोली फिर यादों की अलमारी

शायद मिल जाए रोशनी की कोई किरण

छट जाए धुंध पड़ी जो बनते बिगड़ते रिश्तों पर

निखर साफ़ हो आये तस्वीर पुनः

ओझल होती इन पलकों में 

Thursday, October 4, 2018

मिथ्या

हर मिथ्या भी एक सत्य हैं

जाने किसके पीछे क्या रहस्य हैं

हर तरफ फ़ैला हुआ एक भ्रम हैं

पिरोया हुआ जिसमें एक कटु सत्य हैं

धूल पड़ी हो दर्पण पर जहाँ

असत्य ही वहाँ सत्य का आईना हैं

जमघट लगा हो झूठों का जहाँ

उड़ती हैं अफवाहें रोज नयी नयी वहाँ

सत्य असत्य की इस हलचल में

सत्य का यहाँ कोई मौल नहीं

फ़र्क करें तो करें कैसे

मिथ्या भँवर का इस युग में कोई तोड़ नहीं

इस युग में कोई तोड़ नहीं

पत्थरों का शहर

पत्थरों का शहर हैं ऐ ज़नाब

मुर्दाघरों सा यहाँ सन्नाटा हैं

बियाबान रात की क्या बात

दिन के उज्जाले में भी यहाँ

अस्मत आबरू शर्मसार हैं

कहने को हैं ए सभ्य समाज

पर जंगल का यहाँ राज हैं

दरिन्दों की हैवानियत के आगे

मूक जानवर भी यहाँ लाचार हैं

पानी से सस्ता बिकता मानव लहू यहाँ

शायद इसलिए

नरभक्षियों की बिसात के आगे यहाँ

खुदा भी खुद मौन विवश लाचार हैं

इसी कारण

पत्थरों के इस शहर में

कुदरत के कानून के आगे

मानवता जैसे कफ़न में लिपटी

कोई जिन्दा लाश हैं, कोई जिन्दा लाश हैं

Saturday, September 29, 2018

नायाब

सहर ने एक नायाब शब्बाब इख्तियार कर लिया

रूहानियत आफरीन अकदित हो उठ आयी

खुल्द खुलूस तस्कीन से जो अब तलक महरूम थी 

आज मुख़्तलिफ़ बन मय्सर हो आयी 

अमादा हो गयी मानो जमाल की अकीदत 

लिहाज़ लहज़ा वसल जैसे एहतिराम कर आयी 

नूर मुकादस सिफ़र ना था इसका , इसलिए

हर शबनमी कतरा इस पर फ़ना हो आयी  

रंजिश मिथ्या तल्खी कहर अब गुजरी रात थी 

आबशार सा शब्बाब लिए वो आज आफ़ताब की चाँद थी 

मय्सर ऐसे हो गए आज उनके नवाजिसों कर्म 

उन्स मानों जैसे काफिलों की बारात बन आयी 

रंग ऐसा चढ़ा उनका बदलते पैमानों की रफ़्तार पे 

वसल नजाकत सिद्दत बन गयी रक्स के राग पे

रक्स के राग पे , रक्स के राग पे

Saturday, September 22, 2018

पतन

गुजरता रहा ठहरता रहा

इस खुशफ़हमी में जीता रहा

खुदा हूँ इस दिल का

इसलिए औरों से किनारा करता रहा

अहंकार के वशीभूत उस चौराहें खड़ा था

जहाँ न कोई तर्पण था न कोई अर्पण था

मरुभूमि की मृगतृष्णा सा

अज्ञानी प्यासा अकेला सा खड़ा था

चिंतन मनन अब कल का हिस्सा था

इन दरख़तों में तो सिर्फ और सिर्फ

अब बबूल का झाड़ था

फितरत कायनात का भी सबक था

औरों को तुच्छ समझना

अपने पतन का मार्ग था

अपने पतन का मार्ग था  


Thursday, September 20, 2018

नावाकिफ़

इस अंजुमन में एक कसक अभी बाकी हैं

तेरे से इश्क़ लगाने की उम्र अभी बाकी हैं

अहसासों का रूह से मिलन अभी बाकी हैं

शायद अरमानों के ताबीर से

इसे रूबरू होना अभी बाकी हैं

हृदय एकाकार हो

अंगीकार की मिलन बेला अभी बाकी हैं

क्योंकि पूर्णमासी की रात अभी आनी बाकी हैं

इस दिल के दरम्यां एक बात बहुत पुरानी हैं

तस्वीर तेरी छिपा रखी इस तिल्सिम में

ज़माना तो क्या तू भी इस खबर से

अब तलक नावाकिफ़ हैं

क्योंकि दीवानगी  कच्ची उम्र

अभी सयानी होनी बाकी हैं

अभी सयानी होनी बाकी हैं

Saturday, September 1, 2018

इशारे

आँखों के इशारों से 

क्या खूब खत लिखें उन्होंने

भाषा ख़त की परिभाषा

मानों नयनों के रंगो में रंग गयी

आँखे लबों के अल्फ़ाज़

और इशारें खतों के पैगाम बन गयी

पलकों में सपनों की तरन्नुम

ऐसी फिर रच बस गयी

हर आरज़ू की तम्मना

उनके इशारों की रह गुजर बन गयी

मानों जैसे हर इशारों के नूर से

ख़ुदा रूह में उतर गयी

कहदी बात दिल की उन्होंने

इशारों ही इशारों में

लड़ते रहे पेंच नयनों के

खतों के इन खूबसूरत लिफाफों से

बरसते रहे पैगाम

नयनों के इन हसीन इशारों से

बंद ना हो पलक

ओझल ना हो संदेश

नयनों  के इन हसीन गलियारों से 

नयनों  के इन हसीन गलियारों से 




Saturday, August 25, 2018

ग़ज़ल

दिल आज फ़िर कुछ कह रहा हैं

चल मैं और तुम कुछ लिखतें हैं

गुजरे पलों का हिसाब ग़ज़लों में करते हैं

अधूरी रह ना जाये कोई नज़्म

इसलिए क्यों ना फ़िर

शायरी के अल्फजाओं में जिन्दा रहते हैं

झलक दिख रही हो दर्पण में जैसे

चमक रही चाँदनी सितारों में जैसे

छलक जाये क्यों ना फिर मैं और तुम

गीत बन बरसने बेताब तरन्नुम में

हर महफ़िल सज जाये तेरे मेरे गीतों में

निहारे फ़िर जब कभी उस पल को

निखर आये क़ायनात सारी

ग़ज़ल के सिर्फ एक ही लफ्जों में

ग़ज़ल के सिर्फ एक ही लफ्जों में

Thursday, August 23, 2018

भटकना

कारवाँ वो ठहर सा गया था

निकला था जो मुक़ाम की राह

अनजाने मोड़ पर ठिठक गया था

कुछ रहस्यमयी किरणों का उजाला सा था

खड़ा था कोई अनजाना उस मुक़ाम पे

व्याकुल था जो मुझमें समा जाने को

सम्मोहित सा हो गया मन बाबरा था

भटक मंजिल की राहों से

अनजानी प्रीत के इस सम्मोहन में

जिंदगी अपनी लूटा जाने को बेक़रार था

तिल्सिम का रहस्य भरा यह पिटारा था

ख़जाना संगीत का लुटा रहा था

इससे आगे अब मंजिल का निशा ना था

इसके जादू में मन बाबरा हो भटक रह था

मन बाबरा हो भटक रह था 







Tuesday, August 21, 2018

छाँव

कितनी रूमानी यह रात हैं

सितारों से सजी बारात हैं

मिलन का खूबसूरत आगाज हैं

चाँदनी दे रही यह पैगाम हैं

दो रूहों की यह सुहानी रात हैं

थम जाए यह पहर

मंद हो जाए चाँद का आफताब

निहारुँ अपनी प्रेयसी की

हिरणी सी मदमाती चाल

झीलों सी सुन्दर आँख

पहलु में उसके गुजर जाए हर यह रात

यूँही मिलती रहे सदा

उसके दामन में

खुले केशवों की छाँव

खुले केशवों की छाँव 

उदासी

वो नूर थी इन आँखों की

आफ़ताब की चाँदनी थी रातों की

नज़र लग गयी उसे बेदर्द जमाने की

मदहोश कर देती थी जिसकी हर अदा

डूब रही वो आज ग़म के साये में

संगीत बरसता था कभी जिसके हर लफ्जों में

ख़ामोशी में तब्दील हो वो गुमनाम हो गयी

दर्द बिछडन का उसे ऐसा लगा

ओढ़नी उदासी की ओढ़

जुदा खुद से हो गयी

छोड़ भटकने रूह को

अलविदा मोहब्बत को कह गयी

अलविदा मोहब्बत को कह गयी


Monday, August 20, 2018

बरबस

बरबस ही आंखें छलक आती हैं

याद उनकी जब जब आती हैं

दरख्तों से टूटते पतों सी

कुछ इनकी भी जुबानी हैं

कभी चिनारों पे लहराती

कभी साहिल के मौजों से टकराती

हर याद उनकी रूमानी हैं

बातों की हर अदाओं में रागिनी

मेघों में लहराती जैसे चाँदनी हैं

हर फ़लसफ़ों में एक नयी बयानी हैं

माना बातें उनकी ऐ पुरानी हैं

फिर भी लगती नई नवेली सी हैं

खुदा से फ़रियाद बस यही हमारी हैं

सदा जिन्दा रहे वो इस रूह में

क्या हुआ जो आँखों में पानी ही पानी हैं

क्या हुआ जो आँखों में  पानी ही पानी हैं


Saturday, August 18, 2018

पहरेदार

उनकी नयनों की गलियों से हम क्या गुजरे

इश्क़ उनकी रूह से हम कर बैठे

पर बेखबर थे हम इस राज से

की लूट गये थे दिल के बाजार में

फ़रमाया गौर जरा जब उनकी पलकों ने

पर्दा सरकता गया हौले हौले इस राज से

आँखों ने उनकी जो इकरार किया

रंग हिना सा मुखर निखर गया

निगाहें उनकी जैसे पहरेदार बन बैठी

और मानों

इश्क़ की गलियों के हम गुलाम बन गए

घायल हो नयनों के तीरों से

दिल के बाज़ार में अपने आप को लुटा बैठे

बेखबर थे जिस तूफ़ान से

आशियाँ उसीमें में बना बैठे






Friday, August 17, 2018

अधूरे अल्फ़ाज़

कुछ अल्फ़ाज़ अधूरे से हैं

कुछ गीत अधूरे से हैं

वो अगर मिल जाये तो भी

कुछ खाब्ब अधूरे से हैं

खुली किताबों सी हैं ए कहानी

दीवारों पे उकेरी हो

जैसे कोई अधूरी सी चित्रकारी

अब तलक अधूरी हैं वो जिंदगानी

देखि थी जिसने कभी

निगाहों की मेहरबानी

कुछ रस्म कुछ रिवाज

चुरा ले गए थे दिल के आफ़ताब

बिछड़ गयी थी चाँदनी

अधूरे रह गए थे अरमान

जैसे ही ली रंगों ने करवट

बदल गए थे सारे अंदाज़

इस बेखुदी में ख़ामोशी से

बस हम तकते रह गए आसमान 

Saturday, August 11, 2018

इश्क़ का नशा

शाकी का सुरूर चढ़ ना पाया

मोहब्बत का रंग उतर ना पाया

जाम जो पिला दिया नयनों ने

होश ग़ुम हो गए

मदहोशी के आँचल में

आलम इश्क़ के नशे का ऐसा जमा

बिन पिये ही दिल थिरकने लगा

ख़ुमारी इस लत की ऐसी लगी

हर आँखे मदिरा

और हर बाहें मधुशाला लगने लगी

तवज्जों मोहब्बत को क्या मिली

काफ़ूर मदिरालय की वयार हो गयी

जैसे सूरा के नशे से भी गहरी

इश्क़ के नशे की खुमारी चढ़ गयी

खुमारी चढ़ गयी




Friday, August 10, 2018

किस्मत

उम्र पीछे छूट गयी

रफ़्तार जिंदगी की

बचपन चुरा ले गयी

वो आसमानी छटा

वो सावन की घटा

बस यादें पुरानी

दिल की किताबों में सिमट रह गयी

सपनों की वो मंज़िल

चाँद सितारों सी हो गयी

कभी पास तो कभी दूर

मानों हाथों की लकीरों से

सपनों की ताबीर दूर हो गयी

नीलाम हो गयी वो मासूमियत भी 

छलकती थी लड़कपन में जिनके

शरारतों भरी छटपटाहट

छोड़ उम्र की उस दहलीज को

विदा हो गयी रूह

बदल किस्मत की लकीरों को


Thursday, August 2, 2018

गुश्ताख़ियाँ


गुश्ताख़ियाँ कुछ ऐसी हमसे हो गयी 

कुछ यादगार फ़सानों में तो

कुछ अफसानों में तब्दील हो गयी

अर्ज़ियाँ लिखी फ़िर खूब गुजारिशों के साथ

शायद टूट जाए फासलों की शमशीरें दीवार  

ओर बदल जाए हसीन गुनाहों के संसार 

बिन कहे ही ना जाने कब मन बाबरा 

भिभोर हो चला था उस अदाकार के साथ 

उम्र के उस कमसिन दौर में 

अनजाने में बदल गए थे जज्बात 

पर जाने कैसे चुभ गयी 

दिल को वो एक मर्मस्पर्शी छोटी सी बात 

थम गया सिलसिला ठहर गया कारवाँ

डहा बहा ले गया अश्क़ों का सैलाब

दिलों के दरमियाँ थी जो यारी की दीवार 

दिलों के दरमियाँ थी जो यारी की दीवार 


Thursday, July 26, 2018

पहचान

पहरेदार ज़माना जो बन बैठा

हमनें भी फ़िर आशिक़ी में तेरी

पहचान को अपनी गुमशुदा बना दिया

इश्क़ ही हैं सरफ़िरे दीवानों का मजहब

इस हक़ीक़त से ज़माने को रूबरू करा दिया

ठुकरा हर आयतें हर कलमा खुदा की

इश्क़ की इबादत को ही

पहचान अपनी बना लिया

बिस्मिल्लाह कर मोहब्बत से

इश्क़ के आफ़ताब का नूर ऐसा बना

आशिक़ों की फ़ेहरिस्त में

सबसे ऊपर

नाम अपना शुमार करा लिया

नाम अपना शुमार करा लिया




Sunday, July 15, 2018

भरोसा

यकीन खुद पर इतना रख

देख तेरे बुलंद हौसलें को

डर खुद अपने आप से इतना डर जाये

फ़िर कभी ख़ाब में भी डराने तुझे पास ना आये

याद रख इतना इस संसार में

कमजोरों की कोई पहचान नहीं

लक्ष्य से भटकों का कोई मुक़ाम नहीं

हारी बाज़ी जो जीत में पलट दे

उससे बड़कर कोई पहचान नहीं

जिंदगी के इस रण में

निराशा का कोई मुकाम नहीं

यकीन अगर खुद पर हो तो

सौ सौ चक्रव्यूह भेदना भी नामुमकिन सवाल नहीं

इसीलिए

खुद के भरोसे से ऊपर भगवान भी विराजमान नहीं     


मुल्क

तलाश में तेरी ख़त मेरा

मुल्क तेरा पूरा छान आया

पता पर वो मिला नहीं

आशियाना कभी जहां चाँद ने सँजोया था

शब्बाब ने तेरे ऐसा हमें डुबोया

हर नूर में सिर्फ़ तेरा अस्क नज़र आया

तस्वीर माँगी जमाने ने जो तेरी

खुद की तस्वीर में रंग तेरा भर दे आया

सितारों से पूछा फूलों में ढूंढा

अफसानों के उन तरानों को

हर महफ़िल में गुनगुनाया  

कलमा अपनी इबादत का नया लिख

तेरे मुल्क का आसमाँ रंग आया

आसमाँ रंग आया

Saturday, July 7, 2018

जुस्तजूं

जुस्तजूं इश्क़ की ऐसी लगी

फ़रियाद हवाओं संग बह चली

मुशायरा, मशवरा ऐसा अंदाज ए वयां बन आयी

हर जज्बातों मेँ  शायरी बन आयी

मिज़ाजे इश्क़ शबाब्ब ऐसा चढ़ा

हर क़तरा क़तरा क़ासिद बन आयी

दीवानगी के फ़ितूर का रंग ऐसा रंगा

फ़लक तलक जिंदगी फ़ना हो आयी

मुस्तक़बिल मुरीद ऐसी बन छाई

दिलों के अंजुमन में,

रसक ए कमर इज़हार कर आयी

मिल लफ्जों से नज़्म ऐसी बना डाली

हर दरख़्तों पर मानों फ़िजा चली आयी

बा दस्तूर क़ुरबत ऐसी मिली

सारा जहाँ भूल,

जिंदगानी इश्क़ के दरम्याँ सिमट आयी

जिंदगानी इश्क़ के दरम्याँ सिमट आयी 

Tuesday, July 3, 2018

आवाज़

दिलजलों की दास्ताँ के आगे

मयख़ाने में ए साकी तेरी कोई औकात नहीं

तू सिर्फ एक सफ़र हैं इस मोड़ का

हमसफ़र हर्गिज नहीं

कह दे मयखानों की दरों दीवारों से

छलकते जाम इनकी वफ़ा के पैमाने नहीं

पर ग़म भुलाने को

इससे बढ़ कर ओर कोई दवा नहीं

माना आगोश में इसकी

खुद की कोई पहचान नहीं

पर इससे हसीं कोई ओर महबूब भी तो नहीं

फिर भी

बिन दिलजलों के

ए साकी तेरी कोई पहचान नहीं

क्योंकि बिन इनके

तेरे दर पे ग़ज़ल की कोई आवाज़ नहीं 

ग़ज़ल की कोई आवाज़ नहीं 

इत्र सी

आ एक बार फ़िर से

उन गुजरें हुए लम्हों को यादगार बना ले

कुछ सुहाने पल चुरा

यादों का एक हसीन घरोंदा बना ले

किताबों के उन सुखें फूलों से

इसकी दरों दीवार सजा दे

इन्तजार के उन पलों में

मिलन की एक नयी आस जगा दे

निहारते हुए इस खाब्ब को 

आ यादों की ऐसी ताबीर बना ले

हर रूत महके ऐसी कायनात बना ले 

अनछुए पहलुओं  को

नींद से जागने की खुमारी बना ले

छू जाए दिल को जो बार बार

उन गुजरें यादों की

इत्र सी महकती कशिश बना ले

आ एक बार फ़िर से

उन गुजरें हुए लम्हों को यादगार बना ले

Wednesday, June 20, 2018

लिबास

रूह ने मेरी लिबास बदल लिया

सौगात मोहब्बत की क्या मिली

दिल को तेरे अपना आशियाना बना लिया

मशरूफ़ थी जो जिंदगी

कभी अपने आप में

आज तारुफ़ को तेरी

अपने जीने को सहारा बना लिया

सच कहुँ तो

अजनबी हो गया हूँ अपने आप से

ख़ुदा जब से तुम्हें मान लिया

बदल गयी जिंदगानी मेरी

रूह ने मेरी लिबास जब से तेरा ओढ़ लिया

लिबास जब से तेरा ओढ़ लिया  

Saturday, June 9, 2018

तन्हाइयों के पैगाम

ऐ शाम क्यों तुम तन्हाइयों के पैगाम लाती हो

ना सितारों की बारात ना चन्दा का साथ

फ़िर क्यों करवटों में सपने सँजोती हो

दिन ठहरता नहीं रात गुजरती नहीं

क्यों फ़िर तुम इन अधखुली पलकों को जगाती हो

कर्जदार बना मुझे नींदों का

सौदागिरी क्यों अपने सपनों की दिखलाती हो

ख्वाईसों के कुछ अंश जो अभी बाकी हैं

इशारों ही इशारों में

बेपर्दा क्यों तुम उन्हें कर जाती हो

महरूम कर मुझे अपने आप से

ढ़लते पहर के साथ निन्दियाँ क्यों तुम चुरा ले जाती हो

ऐ शाम क्यों तुम तन्हाइयों के पैगाम लाती हो

तन्हाइयों के पैगाम लाती हो








Wednesday, June 6, 2018

पहचान

ऐ ख़ुदा एक बार तू मुझें अपने आप से रूबरू करवाँ दे

बिछड़ गया था जो लडकप्पन जिंदगी की रफ़्तार में

उस बचपन को एक बार फ़िर से गले लगा दे

ऐ ख़ुदा एक बार तू मुझें अपने आप से रूबरू करवाँ दे

तन्हा अकेला खड़ा हूँ अपनों की इस भीड़ में

गैरों में ही सही पर अपनों की पहचान करवाँ दे

ऐ ख़ुदा एक बार तू मुझें अपने आप से रूबरू करवाँ दे

खो गया हूँ संसार के जिस शून्य भँवर में

खोई हुई उस चेतना हृदय को फ़िर से जगा दे

ऐ ख़ुदा एक बार तू मुझें अपने आप से रूबरू करवाँ दे

इस जिंदगी को मरघट पड़ाव भी हसतें हसतें मिल जाये

गुमशुदा इस जीवन को जिंदादिली की ऐसी पहचान दिला दे

ऐ ख़ुदा एक बार तू मुझें अपने आप से रूबरू करवाँ दे

ऐ ख़ुदा एक बार तू मुझें अपने आप से रूबरू करवाँ दे

Friday, May 25, 2018

हमराज

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे

इश्क़ किया किससे यह तुम्हें बता देंगे

अब तलक लबों पे आ नहीं सकी जो बात

वो कलमें तुम्हें सुना देंगे

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे

मिल रही गीतों में जो नवाजिसे कर्म

आवाज़ से उसकी तुम्हें रूबरू करा देंगे

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे

जो हैं नज़रों के सामने

खाब्ब हैं जिनके इन नयनों में

दो चार उनसे भी तुम्हें करा देंगे

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे 

छला

तेरे हाथों जब जब छला जाता हूँ

सोओं बार टूट टूट बिखर जाता हूँ

पलट कर फ़िर जब दर्पण निहारता हूँ

एक गुमनाम शख्शियत से रूबरू पाता हूँ

मिन्नतें फरियादें घायल दिल की

वो भी जब तुम अनसुनी कर देती हो

धड़कने फिर रूह से जुदा हो जाती हैं

और साँसों की डोर से जीने की तम्मना

अलविदा कह रुखसत हो जाती हैं

अलविदा कह रुखसत हो जाती हैं 


Saturday, May 19, 2018

मैं

कभी फूलों सा खिलता  हूँ

कभी हवाओं में बिखरता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो तन्हा यादों में भी महकता हूँ

कभी रात के साये में तारों सा चमकता हूँ

कभी पूर्णिमा के चाँद सा दमकता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो अमावस की रात ओर भी निखरता हूँ

कभी झरनों सा बहता हूँ

कभी सागर सा मचलता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो हर नयनों के नूर में बसता हूँ

कभी इत्र सा  बहकता हूँ

कभी मित्र सा बन जाता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो रूह बन धड़कनों में बस जाता हूँ



Thursday, April 12, 2018

गुज़ारिश

राज सारे जो आज खुल गए

कल कैसे फ़िर उन्हें याद करेंगे

बिन यादों की पनाह

कैसे फ़िर चाँद का दीदार करेंगे

तन्हाईओं की ग़ज़ल

कहीं महफ़िल में गुम ना हो जाये

बात दिलों के दरमियाँ की

कहीं सरेआम ना हो जाये

गुज़ारिश ज़माने से इसलिए इतनी सी हैं

कुछ राज को राज ही रहने दो

जब तलक जुड़ी हैं साँसे धड़कनों से

यादों के इन हसीन तिल्सिम में

दिल को खामोश सफ़र करने दो

दिल को सफ़र करने दो

Tuesday, April 10, 2018

अभिशाप

ऐ हमसफ़र तेरे नवाजिश कर्म की ही मेहरबानियाँ हैं

धड़कने आज भी तेरे साँसों की कर्जदारियाँ हैं

फ़िदा जो यह दिल कभी हो गया था

उस गुलाब का सफ़र अब यादों की खुमारी हैं

माना राहें वक़्त ने बदल दी

पर कशिश दिल लगी की नूर बन गयी

इसलिए ऐ हमसफ़र

बरस रही घटोँ सी बरस रहे नयन आज हैं

तुम मेरी परछाई मैं तेरा साया था

शायद इसलिए मुकम्ल नहीं हुआ साथ हमारा

दिल चले थे संग हमारे

पर बहक गए थे कदम आते आते किनारें

बिछड़न का यह भी एक सँजोग था

बस इस रात के बाद दिन का उजाला न था

तन्हाईओं में तड़पने को जिन्दा आज भी हूँ

साँसों का तेरी बस एक यही पैगाम था

यादों के सफ़र  में बिन हमसफ़र रहने के

अभिशाप का अहसास ही अब सिर्फ़ मेरे पास हैं 

अब मेरे पास हैं


Friday, March 23, 2018

कब्रगाह

वो दूर क्या गये एक भूल से

दिल यादों का कब्रगाह बन गया

फ़नाह थी जो मोहब्बत कभी

लिपटी रहती थी फूलों की चादर सी

जो कभी इस मज़ार से

मुरझा रुखसत हो गयी

अलविदा कह

तन्हा बैचेन छोड़ गयी इस रूह को

भटकने यादों के कब्रिस्तान में

भटकने यादों के कब्रिस्तान में

Thursday, March 8, 2018

हसीं

उनकी एक हसीं से रंगों के गुलाल खिल गये

अधरों पर मानों गीत मधुर सज गये

चेहरे से नक़ाब जो सरक गया

तमस को चीर आफ़ताब खिल गये

बरसते लावण्य में भींगे सौंदर्य से

जैसे रूप अप्सरा यौवन खिल गये

देख मदहोशी की इस मधुशाला को

फिजाँ भी नशे में बल खाकर बहकने लगे

मानो वक़्त से पहले ही

चमन में सावन झूमने लगे

चमन में सावन झूमने लगे

Thursday, February 22, 2018

महफ़िल

दिल कह रहा हैं

आज फिर एक बार

महफ़िल तेरी यादों के रंगों से सजा दूँ

टूटे दिल को फ़िर से

प्यार के रंगों से सजा दूँ

हमसफ़र बस  इतना तू जान ले

मगरूर ना थी आशिक़ी हमारी

पर देख ख़फ़ा नज़रें तुम्हारी

तन्हा रह गयी दीवानगी हमारी

तू मेरी छाया मैं तेरा दर्पण

तू मेरी साज़ मैं तेरा सरगम

दिल कह रहा हैं

एक बार फ़िर  से

महफ़िल में गीत यह गुनगुना दूँ

और तेरी हसीं के रंगों से

आज एक बार फ़िर महफ़िल सजा दूँ

एक बार फ़िर महफ़िल सजा दूँ 

Thursday, February 15, 2018

इबादत

बदरंग थी इबादत हमारी

लहू का रंग जो उसे मिला

निखर बन गयी क़यामत भारी

मंत्र मुग्ध हो

झुक गयी कायनत भी सारी

हृदय स्पर्शी मर्माहत ढाल ऐसी बन गयी

ढल नये आयाम में

जैसे सुन्दर आयतें गढ़ गयी

मानों लहू से लिखे कलमें से  

इबादत हमारी भी कबूल हो गयी

इबादत हमारी भी कबूल हो गयी


Wednesday, February 14, 2018

यारी हमारी

कोशिशें बहुत की

मुड़ कर जाते कदमों को रोक लूँ

पर कह न पाया दिल की जो बात

रुख उनकी हवाओं का कैसे मोड़ दूँ

लफ्ज़ जाने आज क्यों इतने पराये हो गए

लबों पे आते आते बेगाने हो गए

पलट गयी थी अब दिल की हर बाज़ी

कर रुखसत चुपके से यारी हमारी

यारी हमारी

Friday, February 2, 2018

मौका

मशग़ूल रहा मैं जिंदगी की दौड़ भाग में

गुफ्तगूँ कभी कर ना पाया अपने आप से

वक़्त मेरे लिए ठहर पाया नहीं

गुजर गयी जिंदगी जैसे घुँघरू की ताल पर

सोचा कभी साक्षातार करलूँ जीवन आत्मसात से

थिरकने फिर इसकी धुन पर

चल पड़ा मैं

कभी मधुशाला की चाल पर

कभी मंदिर मस्जिद की ताल पर

रूबरू फिर भी हो ना पाया अपने आप से

मंजर इसका बयाँ कैसे करुँ समझ ये कभी पाया नहीं

नापाक खुदगर्जी सी लगने लगी

बटोरी थी अब तलक जो शौहरतें

कसक बस एक इतनी सी रह गयी

मिलने खुद से

ललक अधूरी यूँ रह सी गयी

निर्वृत हो जाऊँ अब मोह माया जाल से

गले लिपट रो सकूँ अंत में अपने आप से

कशिश कही यह अधूरी रह ना जाए

इसलिए जिंदगी बस एक मौका ओर दे दे

ताकि सकून से

गुफ्तगूँ कर पाऊँ अपने आप से

अपने आप से

Saturday, January 20, 2018

भाग्य का उदयमान

आप की तरह नहीं मेरी लेखनी में वो धार

पर संगत में आपकी उसको भी मिलेगा निख़ार

दम दिखलायेगी यह भी फिर अपना

जब संग इसके होगा आपका साथ

ओत प्रोत हो नई प्रेरणा से

यह भी फिर कभी रचेंगी अपना इतिहास

ताल मेल का सामंजस्य जो बैठ गया

बन जायेगा यह भी फिर वरदान

स्वतः ही लेखनी को फिर मिल जायेगा

एक नई ऊर्जा का संचार

फ़िर मेरी भी हर एक रचना से होगा

मेरे एक नए भाग्य का उदयमान





Friday, January 12, 2018

अल्फाजों की दुनिया

बड़ी जादुई हैं अल्फाजों की दुनिया

दर्द अगर मिल जाये तो

बिखर जाती हैं रुमानियत की दुनिया

बिखर जाती हैं रुमानियत की दुनिया

कभी गीत तो कभी ग़ज़ल बन

अफसानों में निखर आती हैं दुनिया

अफसानों में निखर आती हैं दुनिया

खामोश लफ्जों से जब बयां होती हैं

सज जाती हैं फिर अल्फाजों की एक नयी दुनिया

सज जाती हैं फिर अल्फाजों की एक नयी दुनिया

अश्क़ भी रो पड़ते हैं

अश्क़ भी रो पड़ते हैं

देख इनकी तन्हा भरी दुनिया

दफ़न हैं कहीं दिल की गहराईओं में

समटे अनगिनत राज अल्फाजों की दुनिया

समटे अनगिनत राज अल्फाजों की दुनिया

क्योंकि

बड़ी जादुई हैं अल्फाजों की दुनिया

बड़ी जादुई हैं अल्फाजों की दुनिया

Tuesday, January 2, 2018

गुंजयमान

अक्षरों से आसमाँ रंग दूँ

शब्दों को गुंजयमान कर दूँ

प्रेरणा ऐसी बन जाऊ मैं

हर काव्य सुधा का

अमृत रस पान बन जाऊ मैं

अभिभूत कर क़ायनात को

अपनी रचना को सार्थक कर जाऊ मैं

आफ़ताब भी धरा पर उतर पड़े

स्वर लहरों पर विराजमान हो

अक्षरों के मोतियों को

पिरों शब्दों में

संगीतमय कर जाऊ जब मैं

संगीतमय कर जाऊ जब मैं