खुदगर्ज़ हैं अगर तू ए ख़ुदा
तो मैं भी अधूरे सपनों की ताबीर लिए खड़ा हूँ
जंग छिड़ी हैं आज हम दोनों बीच
क्या फ़र्क पड़ता हैं
किस्मत जो तूने लिखी नहीं
फ़िर भी अधूरी हाथों की लकीरें कर्म से पीछे हटती नहीं
मायूस हूँ मैं ए ख़ुदा
पर लाचार नहीं
जीत आज तू मुझसे सकता नहीं
आगे बढ़ते मेरे कदमों को रोक सकता नहीं
स्वाभिमान की पराकाष्ठा आज तेरे अहंकार से टकराई हैं
देख मेरे बुलंद हौसलों को
खड़ा हो जा तू भी मेरे संग
वक़्त भी आज दे रहा यह दुहाई हैं
दे रहा यह दुहाई हैं
तो मैं भी अधूरे सपनों की ताबीर लिए खड़ा हूँ
जंग छिड़ी हैं आज हम दोनों बीच
क्या फ़र्क पड़ता हैं
किस्मत जो तूने लिखी नहीं
फ़िर भी अधूरी हाथों की लकीरें कर्म से पीछे हटती नहीं
मायूस हूँ मैं ए ख़ुदा
पर लाचार नहीं
जीत आज तू मुझसे सकता नहीं
आगे बढ़ते मेरे कदमों को रोक सकता नहीं
स्वाभिमान की पराकाष्ठा आज तेरे अहंकार से टकराई हैं
देख मेरे बुलंद हौसलों को
खड़ा हो जा तू भी मेरे संग
वक़्त भी आज दे रहा यह दुहाई हैं
दे रहा यह दुहाई हैं
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