तस्वीर तेरी धुँधली हो गयी
या मेरे आँखों की रोशनी मंद हो गयी
छूट गयी यारी जो तेरी गलियों से
दूर हो गयी नजरें मेरी तेरी चाहतों से
बिन सप्तरंगी रंगों के आँगन में
खोये हुए ख्यालों की चादर में
हल्की हल्की मध्यम रोशनी के सायों में
जलते बुझते चाहतों के अँगारों में
आँख मिचौली खेल रही तस्वीर तेरी
मेरी बोझिल होती आँखों से
टूट ना जाये तस्वीरों का यह बंधन
टटोली फिर यादों की अलमारी
शायद मिल जाए रोशनी की कोई किरण
छट जाए धुंध पड़ी जो बनते बिगड़ते रिश्तों पर
निखर साफ़ हो आये तस्वीर पुनः
ओझल होती इन पलकों में
या मेरे आँखों की रोशनी मंद हो गयी
छूट गयी यारी जो तेरी गलियों से
दूर हो गयी नजरें मेरी तेरी चाहतों से
बिन सप्तरंगी रंगों के आँगन में
खोये हुए ख्यालों की चादर में
हल्की हल्की मध्यम रोशनी के सायों में
जलते बुझते चाहतों के अँगारों में
आँख मिचौली खेल रही तस्वीर तेरी
मेरी बोझिल होती आँखों से
टूट ना जाये तस्वीरों का यह बंधन
टटोली फिर यादों की अलमारी
शायद मिल जाए रोशनी की कोई किरण
छट जाए धुंध पड़ी जो बनते बिगड़ते रिश्तों पर
निखर साफ़ हो आये तस्वीर पुनः
ओझल होती इन पलकों में
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-11-2018) को "भाई दूज का तिलक" (चर्चा अंक-3150) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
पञ्चपर्वों की श्रंखला में
भइया दूज की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'