Thursday, November 8, 2018

तस्वीर

तस्वीर तेरी धुँधली हो गयी

या मेरे आँखों की रोशनी मंद हो गयी

छूट गयी यारी जो तेरी गलियों से

दूर हो गयी नजरें मेरी तेरी चाहतों से

बिन सप्तरंगी रंगों के आँगन में

खोये हुए ख्यालों की चादर में

हल्की हल्की मध्यम रोशनी के सायों में

जलते बुझते चाहतों के अँगारों में

आँख मिचौली खेल रही तस्वीर तेरी

मेरी बोझिल होती आँखों से

टूट ना जाये तस्वीरों का यह बंधन

टटोली फिर यादों की अलमारी

शायद मिल जाए रोशनी की कोई किरण

छट जाए धुंध पड़ी जो बनते बिगड़ते रिश्तों पर

निखर साफ़ हो आये तस्वीर पुनः

ओझल होती इन पलकों में 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-11-2018) को "भाई दूज का तिलक" (चर्चा अंक-3150) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    पञ्चपर्वों की श्रंखला में
    भइया दूज की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete