Tuesday, August 21, 2018

उदासी

वो नूर थी इन आँखों की

आफ़ताब की चाँदनी थी रातों की

नज़र लग गयी उसे बेदर्द जमाने की

मदहोश कर देती थी जिसकी हर अदा

डूब रही वो आज ग़म के साये में

संगीत बरसता था कभी जिसके हर लफ्जों में

ख़ामोशी में तब्दील हो वो गुमनाम हो गयी

दर्द बिछडन का उसे ऐसा लगा

ओढ़नी उदासी की ओढ़

जुदा खुद से हो गयी

छोड़ भटकने रूह को

अलविदा मोहब्बत को कह गयी

अलविदा मोहब्बत को कह गयी


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