वो नूर थी इन आँखों की
आफ़ताब की चाँदनी थी रातों की
नज़र लग गयी उसे बेदर्द जमाने की
मदहोश कर देती थी जिसकी हर अदा
डूब रही वो आज ग़म के साये में
संगीत बरसता था कभी जिसके हर लफ्जों में
ख़ामोशी में तब्दील हो वो गुमनाम हो गयी
दर्द बिछडन का उसे ऐसा लगा
ओढ़नी उदासी की ओढ़
जुदा खुद से हो गयी
छोड़ भटकने रूह को
अलविदा मोहब्बत को कह गयी
अलविदा मोहब्बत को कह गयी
आफ़ताब की चाँदनी थी रातों की
नज़र लग गयी उसे बेदर्द जमाने की
मदहोश कर देती थी जिसकी हर अदा
डूब रही वो आज ग़म के साये में
संगीत बरसता था कभी जिसके हर लफ्जों में
ख़ामोशी में तब्दील हो वो गुमनाम हो गयी
दर्द बिछडन का उसे ऐसा लगा
ओढ़नी उदासी की ओढ़
जुदा खुद से हो गयी
छोड़ भटकने रूह को
अलविदा मोहब्बत को कह गयी
अलविदा मोहब्बत को कह गयी
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