उनकी नयनों की गलियों से हम क्या गुजरे
इश्क़ उनकी रूह से हम कर बैठे
पर बेखबर थे हम इस राज से
की लूट गये थे दिल के बाजार में
फ़रमाया गौर जरा जब उनकी पलकों ने
पर्दा सरकता गया हौले हौले इस राज से
आँखों ने उनकी जो इकरार किया
रंग हिना सा मुखर निखर गया
निगाहें उनकी जैसे पहरेदार बन बैठी
और मानों
इश्क़ की गलियों के हम गुलाम बन गए
घायल हो नयनों के तीरों से
दिल के बाज़ार में अपने आप को लुटा बैठे
बेखबर थे जिस तूफ़ान से
आशियाँ उसीमें में बना बैठे
इश्क़ उनकी रूह से हम कर बैठे
पर बेखबर थे हम इस राज से
की लूट गये थे दिल के बाजार में
फ़रमाया गौर जरा जब उनकी पलकों ने
पर्दा सरकता गया हौले हौले इस राज से
आँखों ने उनकी जो इकरार किया
रंग हिना सा मुखर निखर गया
निगाहें उनकी जैसे पहरेदार बन बैठी
और मानों
इश्क़ की गलियों के हम गुलाम बन गए
घायल हो नयनों के तीरों से
दिल के बाज़ार में अपने आप को लुटा बैठे
बेखबर थे जिस तूफ़ान से
आशियाँ उसीमें में बना बैठे
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (20-08-2018) को "आपस में मतभेद" (चर्चा अंक-3069) पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
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