Saturday, August 18, 2018

पहरेदार

उनकी नयनों की गलियों से हम क्या गुजरे

इश्क़ उनकी रूह से हम कर बैठे

पर बेखबर थे हम इस राज से

की लूट गये थे दिल के बाजार में

फ़रमाया गौर जरा जब उनकी पलकों ने

पर्दा सरकता गया हौले हौले इस राज से

आँखों ने उनकी जो इकरार किया

रंग हिना सा मुखर निखर गया

निगाहें उनकी जैसे पहरेदार बन बैठी

और मानों

इश्क़ की गलियों के हम गुलाम बन गए

घायल हो नयनों के तीरों से

दिल के बाज़ार में अपने आप को लुटा बैठे

बेखबर थे जिस तूफ़ान से

आशियाँ उसीमें में बना बैठे






2 comments:

  1. आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (20-08-2018) को "आपस में मतभेद" (चर्चा अंक-3069) पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete