Saturday, August 25, 2018

ग़ज़ल

दिल आज फ़िर कुछ कह रहा हैं

चल मैं और तुम कुछ लिखतें हैं

गुजरे पलों का हिसाब ग़ज़लों में करते हैं

अधूरी रह ना जाये कोई नज़्म

इसलिए क्यों ना फ़िर

शायरी के अल्फजाओं में जिन्दा रहते हैं

झलक दिख रही हो दर्पण में जैसे

चमक रही चाँदनी सितारों में जैसे

छलक जाये क्यों ना फिर मैं और तुम

गीत बन बरसने बेताब तरन्नुम में

हर महफ़िल सज जाये तेरे मेरे गीतों में

निहारे फ़िर जब कभी उस पल को

निखर आये क़ायनात सारी

ग़ज़ल के सिर्फ एक ही लफ्जों में

ग़ज़ल के सिर्फ एक ही लफ्जों में

Thursday, August 23, 2018

भटकना

कारवाँ वो ठहर सा गया था

निकला था जो मुक़ाम की राह

अनजाने मोड़ पर ठिठक गया था

कुछ रहस्यमयी किरणों का उजाला सा था

खड़ा था कोई अनजाना उस मुक़ाम पे

व्याकुल था जो मुझमें समा जाने को

सम्मोहित सा हो गया मन बाबरा था

भटक मंजिल की राहों से

अनजानी प्रीत के इस सम्मोहन में

जिंदगी अपनी लूटा जाने को बेक़रार था

तिल्सिम का रहस्य भरा यह पिटारा था

ख़जाना संगीत का लुटा रहा था

इससे आगे अब मंजिल का निशा ना था

इसके जादू में मन बाबरा हो भटक रह था

मन बाबरा हो भटक रह था 







Tuesday, August 21, 2018

छाँव

कितनी रूमानी यह रात हैं

सितारों से सजी बारात हैं

मिलन का खूबसूरत आगाज हैं

चाँदनी दे रही यह पैगाम हैं

दो रूहों की यह सुहानी रात हैं

थम जाए यह पहर

मंद हो जाए चाँद का आफताब

निहारुँ अपनी प्रेयसी की

हिरणी सी मदमाती चाल

झीलों सी सुन्दर आँख

पहलु में उसके गुजर जाए हर यह रात

यूँही मिलती रहे सदा

उसके दामन में

खुले केशवों की छाँव

खुले केशवों की छाँव 

उदासी

वो नूर थी इन आँखों की

आफ़ताब की चाँदनी थी रातों की

नज़र लग गयी उसे बेदर्द जमाने की

मदहोश कर देती थी जिसकी हर अदा

डूब रही वो आज ग़म के साये में

संगीत बरसता था कभी जिसके हर लफ्जों में

ख़ामोशी में तब्दील हो वो गुमनाम हो गयी

दर्द बिछडन का उसे ऐसा लगा

ओढ़नी उदासी की ओढ़

जुदा खुद से हो गयी

छोड़ भटकने रूह को

अलविदा मोहब्बत को कह गयी

अलविदा मोहब्बत को कह गयी


Monday, August 20, 2018

बरबस

बरबस ही आंखें छलक आती हैं

याद उनकी जब जब आती हैं

दरख्तों से टूटते पतों सी

कुछ इनकी भी जुबानी हैं

कभी चिनारों पे लहराती

कभी साहिल के मौजों से टकराती

हर याद उनकी रूमानी हैं

बातों की हर अदाओं में रागिनी

मेघों में लहराती जैसे चाँदनी हैं

हर फ़लसफ़ों में एक नयी बयानी हैं

माना बातें उनकी ऐ पुरानी हैं

फिर भी लगती नई नवेली सी हैं

खुदा से फ़रियाद बस यही हमारी हैं

सदा जिन्दा रहे वो इस रूह में

क्या हुआ जो आँखों में पानी ही पानी हैं

क्या हुआ जो आँखों में  पानी ही पानी हैं


Saturday, August 18, 2018

पहरेदार

उनकी नयनों की गलियों से हम क्या गुजरे

इश्क़ उनकी रूह से हम कर बैठे

पर बेखबर थे हम इस राज से

की लूट गये थे दिल के बाजार में

फ़रमाया गौर जरा जब उनकी पलकों ने

पर्दा सरकता गया हौले हौले इस राज से

आँखों ने उनकी जो इकरार किया

रंग हिना सा मुखर निखर गया

निगाहें उनकी जैसे पहरेदार बन बैठी

और मानों

इश्क़ की गलियों के हम गुलाम बन गए

घायल हो नयनों के तीरों से

दिल के बाज़ार में अपने आप को लुटा बैठे

बेखबर थे जिस तूफ़ान से

आशियाँ उसीमें में बना बैठे






Friday, August 17, 2018

अधूरे अल्फ़ाज़

कुछ अल्फ़ाज़ अधूरे से हैं

कुछ गीत अधूरे से हैं

वो अगर मिल जाये तो भी

कुछ खाब्ब अधूरे से हैं

खुली किताबों सी हैं ए कहानी

दीवारों पे उकेरी हो

जैसे कोई अधूरी सी चित्रकारी

अब तलक अधूरी हैं वो जिंदगानी

देखि थी जिसने कभी

निगाहों की मेहरबानी

कुछ रस्म कुछ रिवाज

चुरा ले गए थे दिल के आफ़ताब

बिछड़ गयी थी चाँदनी

अधूरे रह गए थे अरमान

जैसे ही ली रंगों ने करवट

बदल गए थे सारे अंदाज़

इस बेखुदी में ख़ामोशी से

बस हम तकते रह गए आसमान 

Saturday, August 11, 2018

इश्क़ का नशा

शाकी का सुरूर चढ़ ना पाया

मोहब्बत का रंग उतर ना पाया

जाम जो पिला दिया नयनों ने

होश ग़ुम हो गए

मदहोशी के आँचल में

आलम इश्क़ के नशे का ऐसा जमा

बिन पिये ही दिल थिरकने लगा

ख़ुमारी इस लत की ऐसी लगी

हर आँखे मदिरा

और हर बाहें मधुशाला लगने लगी

तवज्जों मोहब्बत को क्या मिली

काफ़ूर मदिरालय की वयार हो गयी

जैसे सूरा के नशे से भी गहरी

इश्क़ के नशे की खुमारी चढ़ गयी

खुमारी चढ़ गयी




Friday, August 10, 2018

किस्मत

उम्र पीछे छूट गयी

रफ़्तार जिंदगी की

बचपन चुरा ले गयी

वो आसमानी छटा

वो सावन की घटा

बस यादें पुरानी

दिल की किताबों में सिमट रह गयी

सपनों की वो मंज़िल

चाँद सितारों सी हो गयी

कभी पास तो कभी दूर

मानों हाथों की लकीरों से

सपनों की ताबीर दूर हो गयी

नीलाम हो गयी वो मासूमियत भी 

छलकती थी लड़कपन में जिनके

शरारतों भरी छटपटाहट

छोड़ उम्र की उस दहलीज को

विदा हो गयी रूह

बदल किस्मत की लकीरों को


Thursday, August 2, 2018

गुश्ताख़ियाँ


गुश्ताख़ियाँ कुछ ऐसी हमसे हो गयी 

कुछ यादगार फ़सानों में तो

कुछ अफसानों में तब्दील हो गयी

अर्ज़ियाँ लिखी फ़िर खूब गुजारिशों के साथ

शायद टूट जाए फासलों की शमशीरें दीवार  

ओर बदल जाए हसीन गुनाहों के संसार 

बिन कहे ही ना जाने कब मन बाबरा 

भिभोर हो चला था उस अदाकार के साथ 

उम्र के उस कमसिन दौर में 

अनजाने में बदल गए थे जज्बात 

पर जाने कैसे चुभ गयी 

दिल को वो एक मर्मस्पर्शी छोटी सी बात 

थम गया सिलसिला ठहर गया कारवाँ

डहा बहा ले गया अश्क़ों का सैलाब

दिलों के दरमियाँ थी जो यारी की दीवार 

दिलों के दरमियाँ थी जो यारी की दीवार