Tuesday, July 3, 2018

आवाज़

दिलजलों की दास्ताँ के आगे

मयख़ाने में ए साकी तेरी कोई औकात नहीं

तू सिर्फ एक सफ़र हैं इस मोड़ का

हमसफ़र हर्गिज नहीं

कह दे मयखानों की दरों दीवारों से

छलकते जाम इनकी वफ़ा के पैमाने नहीं

पर ग़म भुलाने को

इससे बढ़ कर ओर कोई दवा नहीं

माना आगोश में इसकी

खुद की कोई पहचान नहीं

पर इससे हसीं कोई ओर महबूब भी तो नहीं

फिर भी

बिन दिलजलों के

ए साकी तेरी कोई पहचान नहीं

क्योंकि बिन इनके

तेरे दर पे ग़ज़ल की कोई आवाज़ नहीं 

ग़ज़ल की कोई आवाज़ नहीं 

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