रूह ने मेरी लिबास बदल लिया
सौगात मोहब्बत की क्या मिली
दिल को तेरे अपना आशियाना बना लिया
मशरूफ़ थी जो जिंदगी
कभी अपने आप में
आज तारुफ़ को तेरी
अपने जीने को सहारा बना लिया
सच कहुँ तो
अजनबी हो गया हूँ अपने आप से
ख़ुदा जब से तुम्हें मान लिया
बदल गयी जिंदगानी मेरी
रूह ने मेरी लिबास जब से तेरा ओढ़ लिया
लिबास जब से तेरा ओढ़ लिया
सौगात मोहब्बत की क्या मिली
दिल को तेरे अपना आशियाना बना लिया
मशरूफ़ थी जो जिंदगी
कभी अपने आप में
आज तारुफ़ को तेरी
अपने जीने को सहारा बना लिया
सच कहुँ तो
अजनबी हो गया हूँ अपने आप से
ख़ुदा जब से तुम्हें मान लिया
बदल गयी जिंदगानी मेरी
रूह ने मेरी लिबास जब से तेरा ओढ़ लिया
लिबास जब से तेरा ओढ़ लिया
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.06.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3008 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
Wonderful Manoj bhai!
ReplyDeleteKeep it up !
बहुत सुन्दर....
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