इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे
इश्क़ किया किससे यह तुम्हें बता देंगे
अब तलक लबों पे आ नहीं सकी जो बात
वो कलमें तुम्हें सुना देंगे
इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे
मिल रही गीतों में जो नवाजिसे कर्म
आवाज़ से उसकी तुम्हें रूबरू करा देंगे
इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे
जो हैं नज़रों के सामने
खाब्ब हैं जिनके इन नयनों में
दो चार उनसे भी तुम्हें करा देंगे
इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे
इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे
इश्क़ किया किससे यह तुम्हें बता देंगे
अब तलक लबों पे आ नहीं सकी जो बात
वो कलमें तुम्हें सुना देंगे
इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे
मिल रही गीतों में जो नवाजिसे कर्म
आवाज़ से उसकी तुम्हें रूबरू करा देंगे
इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे
जो हैं नज़रों के सामने
खाब्ब हैं जिनके इन नयनों में
दो चार उनसे भी तुम्हें करा देंगे
इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे
इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-05-2018) को "बदन जलाता घाम" (चर्चा अंक-2983) (चर्चा अंक-2969) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'