कभी फूलों सा खिलता हूँ
कभी हवाओं में बिखरता हूँ
मैं वो गुल हूँ
जो तन्हा यादों में भी महकता हूँ
कभी रात के साये में तारों सा चमकता हूँ
कभी पूर्णिमा के चाँद सा दमकता हूँ
मैं वो गुल हूँ
जो अमावस की रात ओर भी निखरता हूँ
कभी झरनों सा बहता हूँ
कभी सागर सा मचलता हूँ
मैं वो गुल हूँ
जो हर नयनों के नूर में बसता हूँ
कभी इत्र सा बहकता हूँ
कभी मित्र सा बन जाता हूँ
मैं वो गुल हूँ
जो रूह बन धड़कनों में बस जाता हूँ
कभी हवाओं में बिखरता हूँ
मैं वो गुल हूँ
जो तन्हा यादों में भी महकता हूँ
कभी रात के साये में तारों सा चमकता हूँ
कभी पूर्णिमा के चाँद सा दमकता हूँ
मैं वो गुल हूँ
जो अमावस की रात ओर भी निखरता हूँ
कभी झरनों सा बहता हूँ
कभी सागर सा मचलता हूँ
मैं वो गुल हूँ
जो हर नयनों के नूर में बसता हूँ
कभी इत्र सा बहकता हूँ
कभी मित्र सा बन जाता हूँ
मैं वो गुल हूँ
जो रूह बन धड़कनों में बस जाता हूँ
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