Saturday, May 19, 2018

मैं

कभी फूलों सा खिलता  हूँ

कभी हवाओं में बिखरता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो तन्हा यादों में भी महकता हूँ

कभी रात के साये में तारों सा चमकता हूँ

कभी पूर्णिमा के चाँद सा दमकता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो अमावस की रात ओर भी निखरता हूँ

कभी झरनों सा बहता हूँ

कभी सागर सा मचलता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो हर नयनों के नूर में बसता हूँ

कभी इत्र सा  बहकता हूँ

कभी मित्र सा बन जाता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो रूह बन धड़कनों में बस जाता हूँ



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