राज सारे जो आज खुल गए
कल कैसे फ़िर उन्हें याद करेंगे
बिन यादों की पनाह
कैसे फ़िर चाँद का दीदार करेंगे
तन्हाईओं की ग़ज़ल
कहीं महफ़िल में गुम ना हो जाये
बात दिलों के दरमियाँ की
कहीं सरेआम ना हो जाये
गुज़ारिश ज़माने से इसलिए इतनी सी हैं
कुछ राज को राज ही रहने दो
जब तलक जुड़ी हैं साँसे धड़कनों से
यादों के इन हसीन तिल्सिम में
दिल को खामोश सफ़र करने दो
दिल को सफ़र करने दो
कल कैसे फ़िर उन्हें याद करेंगे
बिन यादों की पनाह
कैसे फ़िर चाँद का दीदार करेंगे
तन्हाईओं की ग़ज़ल
कहीं महफ़िल में गुम ना हो जाये
बात दिलों के दरमियाँ की
कहीं सरेआम ना हो जाये
गुज़ारिश ज़माने से इसलिए इतनी सी हैं
कुछ राज को राज ही रहने दो
जब तलक जुड़ी हैं साँसे धड़कनों से
यादों के इन हसीन तिल्सिम में
दिल को खामोश सफ़र करने दो
दिल को सफ़र करने दो
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ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-04-2017) को "डा. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती" (चर्चा अंक-2940) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Great!
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