वो दूर क्या गये एक भूल से
दिल यादों का कब्रगाह बन गया
फ़नाह थी जो मोहब्बत कभी
लिपटी रहती थी फूलों की चादर सी
जो कभी इस मज़ार से
मुरझा रुखसत हो गयी
अलविदा कह
तन्हा बैचेन छोड़ गयी इस रूह को
भटकने यादों के कब्रिस्तान में
भटकने यादों के कब्रिस्तान में
दिल यादों का कब्रगाह बन गया
फ़नाह थी जो मोहब्बत कभी
लिपटी रहती थी फूलों की चादर सी
जो कभी इस मज़ार से
मुरझा रुखसत हो गयी
अलविदा कह
तन्हा बैचेन छोड़ गयी इस रूह को
भटकने यादों के कब्रिस्तान में
भटकने यादों के कब्रिस्तान में
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-03-2017) को "कविता का आथार" (चर्चा अंक-2919) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'