Thursday, February 22, 2018

महफ़िल

दिल कह रहा हैं

आज फिर एक बार

महफ़िल तेरी यादों के रंगों से सजा दूँ

टूटे दिल को फ़िर से

प्यार के रंगों से सजा दूँ

हमसफ़र बस  इतना तू जान ले

मगरूर ना थी आशिक़ी हमारी

पर देख ख़फ़ा नज़रें तुम्हारी

तन्हा रह गयी दीवानगी हमारी

तू मेरी छाया मैं तेरा दर्पण

तू मेरी साज़ मैं तेरा सरगम

दिल कह रहा हैं

एक बार फ़िर  से

महफ़िल में गीत यह गुनगुना दूँ

और तेरी हसीं के रंगों से

आज एक बार फ़िर महफ़िल सजा दूँ

एक बार फ़िर महफ़िल सजा दूँ 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-02-2017) को "त्योहारों की रीत" (चर्चा अंक-2890) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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