दिल कह रहा हैं
आज फिर एक बार
महफ़िल तेरी यादों के रंगों से सजा दूँ
टूटे दिल को फ़िर से
प्यार के रंगों से सजा दूँ
हमसफ़र बस इतना तू जान ले
मगरूर ना थी आशिक़ी हमारी
पर देख ख़फ़ा नज़रें तुम्हारी
तन्हा रह गयी दीवानगी हमारी
तू मेरी छाया मैं तेरा दर्पण
तू मेरी साज़ मैं तेरा सरगम
दिल कह रहा हैं
एक बार फ़िर से
महफ़िल में गीत यह गुनगुना दूँ
और तेरी हसीं के रंगों से
आज एक बार फ़िर महफ़िल सजा दूँ
एक बार फ़िर महफ़िल सजा दूँ
आज फिर एक बार
महफ़िल तेरी यादों के रंगों से सजा दूँ
टूटे दिल को फ़िर से
प्यार के रंगों से सजा दूँ
हमसफ़र बस इतना तू जान ले
मगरूर ना थी आशिक़ी हमारी
पर देख ख़फ़ा नज़रें तुम्हारी
तन्हा रह गयी दीवानगी हमारी
तू मेरी छाया मैं तेरा दर्पण
तू मेरी साज़ मैं तेरा सरगम
दिल कह रहा हैं
एक बार फ़िर से
महफ़िल में गीत यह गुनगुना दूँ
और तेरी हसीं के रंगों से
आज एक बार फ़िर महफ़िल सजा दूँ
एक बार फ़िर महफ़िल सजा दूँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-02-2017) को "त्योहारों की रीत" (चर्चा अंक-2890) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'