बदरंग थी इबादत हमारी
लहू का रंग जो उसे मिला
निखर बन गयी क़यामत भारी
मंत्र मुग्ध हो
झुक गयी कायनत भी सारी
हृदय स्पर्शी मर्माहत ढाल ऐसी बन गयी
ढल नये आयाम में
जैसे सुन्दर आयतें गढ़ गयी
मानों लहू से लिखे कलमें से
इबादत हमारी भी कबूल हो गयी
इबादत हमारी भी कबूल हो गयी
लहू का रंग जो उसे मिला
निखर बन गयी क़यामत भारी
मंत्र मुग्ध हो
झुक गयी कायनत भी सारी
हृदय स्पर्शी मर्माहत ढाल ऐसी बन गयी
ढल नये आयाम में
जैसे सुन्दर आयतें गढ़ गयी
मानों लहू से लिखे कलमें से
इबादत हमारी भी कबूल हो गयी
इबादत हमारी भी कबूल हो गयी
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