ख़ुदा से आज मेरी जंग छिड़ गयी
लेखनी मैंने भी तब हाथों में पकड़ ली
मुक़द्दर ने फ़िर उड़ान की राह पकड़ ली
कुँजी हर दिशा की मानों मुझे मिल गयी
मोक्ष कर्मों का फ़ल हैं
मंत्र से
मैंने अपने किस्मत की लक़ीर बदल दी
मगरूर खुदा का गरूर
अहंम से जो मेरे टकरा गया
अहंकार नहीं
बलबूते पर अपने
करने सपने साकार अपने
खुदा को आज मैं ललकार आया
सोयी क़िस्मत जगाने
खुदा से रण का ऐलान कर आया
खुदा से रण का ऐलान कर आया
लेखनी मैंने भी तब हाथों में पकड़ ली
मुक़द्दर ने फ़िर उड़ान की राह पकड़ ली
कुँजी हर दिशा की मानों मुझे मिल गयी
मोक्ष कर्मों का फ़ल हैं
मंत्र से
मैंने अपने किस्मत की लक़ीर बदल दी
मगरूर खुदा का गरूर
अहंम से जो मेरे टकरा गया
अहंकार नहीं
बलबूते पर अपने
करने सपने साकार अपने
खुदा को आज मैं ललकार आया
सोयी क़िस्मत जगाने
खुदा से रण का ऐलान कर आया
खुदा से रण का ऐलान कर आया
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-11-2017) को "नागफनी के फूल" (चर्चा अंक 2791) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'