रात गुजरती नहीं सुबह चली आती हैं
नींद एक अदद फिर मुकम्मल हो पाती नहीं
विपासना साधना में तल्लीन मन
स्वांग आडंबर का रचाती हैं
ना जाने कैसे सपनों की धरोहर हैं ये
अमूल्य नींद के पलों को बेआबरू कर जाती हैं
बचपन में अर्जित नींद की अस्मत को
क्योँ फटेहाल किस्मत तार तार कर जाती हैं
सपनों की सौदागिरी में
शायद नींद भी कहीं बिक जाती हैं
परवान चढ़ते इस समझौते से
बिन थपकी ही रात पहर गुजर जाती हैं
और बिन नींद मुकम्मल हुए
सुबह चली आती हैं
सुबह चली आती हैं
नींद एक अदद फिर मुकम्मल हो पाती नहीं
विपासना साधना में तल्लीन मन
स्वांग आडंबर का रचाती हैं
ना जाने कैसे सपनों की धरोहर हैं ये
अमूल्य नींद के पलों को बेआबरू कर जाती हैं
बचपन में अर्जित नींद की अस्मत को
क्योँ फटेहाल किस्मत तार तार कर जाती हैं
सपनों की सौदागिरी में
शायद नींद भी कहीं बिक जाती हैं
परवान चढ़ते इस समझौते से
बिन थपकी ही रात पहर गुजर जाती हैं
और बिन नींद मुकम्मल हुए
सुबह चली आती हैं
सुबह चली आती हैं
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