Sunday, September 24, 2017

वट वृक्ष

समय के थपेड़ों ने सबक़ ऐसा सीखा दिया

लोहा भी आग में दमक

सोना सा निख़ार पा गया

सम्बोधन काल चक्र ऐसा बना

वाणी स्पर्श मात्र से

चिराग रोशन हो गया

अभिव्यक्ति की इस अनमोल धरोहर ने

सूत्र प्रकाश पुंज ऐसा प्रज्वलित कर  दिया

अँधेरे में भी रौशनी का आभास हो गया 

लगन समर्पण विचरण

छूने नभ आतुर हो गया

आधार आकार शून्य संगम

धुर्व तारा सा बन चमक गया

बदलते परिवेश के उतार चढ़ाव ने

इस रंगमंच को आयाम नया थमा दिया

अध्याय फ़िर ऐसा खूबसूरत प्रारंभ हुआ

जड़ चेतन ज्ञान वट वृक्ष बन गया

 ज्ञान वट वृक्ष बन गया

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-09-2017) को रजाई ओढ़कर सोता, मगर ए सी चलाता है; चर्चामंच 2739 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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