इस जिंदगी को मोहब्बत रास आयी नहीं
सपनों के बाहर की दुनिया पास नहीं आयी
काश महबूब ने पहले किया होता इकरार
जिक्र हमारा भी फिर होता चाँद के साथ
इस हक़ीक़त से अब कैसे करे इंकार
लबों पे नहीं अब तलक इकरार
पर आँखों से कैसे करे इंकार
इशारों में ही एक बार कह देते वो बात
सुनने दिल जिसे मुदत्तों से था बेकरार
सुनने दिल जिसे मुदत्तों से था बेकरार
सपनों के बाहर की दुनिया पास नहीं आयी
काश महबूब ने पहले किया होता इकरार
जिक्र हमारा भी फिर होता चाँद के साथ
इस हक़ीक़त से अब कैसे करे इंकार
लबों पे नहीं अब तलक इकरार
पर आँखों से कैसे करे इंकार
इशारों में ही एक बार कह देते वो बात
सुनने दिल जिसे मुदत्तों से था बेकरार
सुनने दिल जिसे मुदत्तों से था बेकरार
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