Wednesday, September 13, 2017

तेरे ही नाम

नाम तेरा हम गुनगुनाते रहे

अफ़सोस मगर

समझ ना पाये तुम इन अफसानों को

खोये रहें तुम अपने ही फ़सानों में

मुज़रिम बना दिया मुझे अपने सवालों से

तुम समझ ना पाये बात मेरे इशारों की

कि 

आरजू इस दिल ने बस इतनी की

मौत जब आये

पैगाम आख़री भी तेरे ही नाम हो

तेरे ही नाम हो

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14-09-17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2727 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. नासमझ के लिए भी ऐसी कामना !!!

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