नाम तेरा हम गुनगुनाते रहे
अफ़सोस मगर
समझ ना पाये तुम इन अफसानों को
खोये रहें तुम अपने ही फ़सानों में
मुज़रिम बना दिया मुझे अपने सवालों से
तुम समझ ना पाये बात मेरे इशारों की
कि
आरजू इस दिल ने बस इतनी की
मौत जब आये
पैगाम आख़री भी तेरे ही नाम हो
तेरे ही नाम हो
अफ़सोस मगर
समझ ना पाये तुम इन अफसानों को
खोये रहें तुम अपने ही फ़सानों में
मुज़रिम बना दिया मुझे अपने सवालों से
तुम समझ ना पाये बात मेरे इशारों की
कि
आरजू इस दिल ने बस इतनी की
मौत जब आये
पैगाम आख़री भी तेरे ही नाम हो
तेरे ही नाम हो
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14-09-17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2727 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
नासमझ के लिए भी ऐसी कामना !!!
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