शिकायतों का तुमने ऐसा पहाड़ बना दिया
ना ख़ुद हँस के जिये, ना हमें जीने दिया
अम्बर से ऊँचा ऐसा अंबार लगा दिया
जीना दुश्वार हो, दिवास्वप्न बन रह गया
कुंठाग्रस्त भावना से ग्रसित मर्ज ने
शिकायतों के बोझ तले हसीं को दफ़ना दिया
बेख़ुदी के आलम से हम भी बच ना पाये
हर लफ्जों में शिकायतों को शुमार देख
ख़ुद को अपना गुनहगार मान लिया
शिकायतों को भी शिकायतों से शिकायत ना रहे
इसलिए गुमशुदगी में नाम अपना दर्ज करा दिया
नाम अपना दर्ज करा दिया
ना ख़ुद हँस के जिये, ना हमें जीने दिया
अम्बर से ऊँचा ऐसा अंबार लगा दिया
जीना दुश्वार हो, दिवास्वप्न बन रह गया
कुंठाग्रस्त भावना से ग्रसित मर्ज ने
शिकायतों के बोझ तले हसीं को दफ़ना दिया
बेख़ुदी के आलम से हम भी बच ना पाये
हर लफ्जों में शिकायतों को शुमार देख
ख़ुद को अपना गुनहगार मान लिया
शिकायतों को भी शिकायतों से शिकायत ना रहे
इसलिए गुमशुदगी में नाम अपना दर्ज करा दिया
नाम अपना दर्ज करा दिया
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