Sunday, August 20, 2017

आनंद

उलझें रहे हम तुम सवालों में

रंगीन आसमानी नज़रों में

कभी चाँद कभी सितारें

ढूँढ रहे अपने जबाबों में

सुध बुध बस कुछ नहीं

तल्लीन वक़्त के ख्यालों में

हर हल में भी पेंच नज़र आ रहे

जैसे उलझ गए

अनसुलझे सवालों में

आनंद इसका भी अपना हैं

ब्रह्माण्ड के इन सुन्दर नज़रों में

विचलित नहीं होता मन

उलझें उलझें जबाबों से

इन पहेली बुझती राहों में

हमसफ़र बन गए हम तुम

खो रंगीन आसमानी नज़रों में

खो रंगीन आसमानी नज़रों में 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-08-2017) को "बच्चे होते स्वयं खिलौने" (चर्चा अंक 2703) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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