यारों आज कल आँसू भी मुस्कराते हैं
जब कभी ऐ छलकते हैं
एक पारदर्दिष्टा रेखांकित कर जाते हैं
ओर इस अंजुमन में
अपनों की जगह दिखला जाते हैं
दर्द के इस सफ़र की
बानगी यही हैं जानिये
इसके दर्पण में
अपने सच्चे अक्स को निहारिये
इस मुकाम की आगाज़ ही वो अल्फ़ाज़ हैं
जिक्र जिनका आंसुओ के मुस्कान में हैं
जिक्र जिनका आंसुओ के मुस्कान में हैं
जब कभी ऐ छलकते हैं
एक पारदर्दिष्टा रेखांकित कर जाते हैं
ओर इस अंजुमन में
अपनों की जगह दिखला जाते हैं
दर्द के इस सफ़र की
बानगी यही हैं जानिये
इसके दर्पण में
अपने सच्चे अक्स को निहारिये
इस मुकाम की आगाज़ ही वो अल्फ़ाज़ हैं
जिक्र जिनका आंसुओ के मुस्कान में हैं
जिक्र जिनका आंसुओ के मुस्कान में हैं
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