बहक रहें हैं साँझ के पैगाम
निहारुँ कैसे दरिया में आफ़ताब
नशे में चूर हैं आसमान
निखर रहा मेहताब का आब
छा रहा जैसे यौवन प्रकाश
खुल रहे मधुशाला के द्वार
कंठ भी बैचैन
बनाने मदिरा को गलहार
डूब जाए इस पहर में
करवटें बदलती रातों के साथ
शामे ग़ज़ल बन जाने को
पाँव भी हो रहे हैं बेताब
सुन सितारों की धुन
देख चाँद का अंदाज
बहक रहें हैं साँझ के पैगाम
निहारुँ कैसे दरिया में आफ़ताब
नशे में चूर हैं आसमान
निखर रहा मेहताब का आब
छा रहा जैसे यौवन प्रकाश
खुल रहे मधुशाला के द्वार
कंठ भी बैचैन
बनाने मदिरा को गलहार
डूब जाए इस पहर में
करवटें बदलती रातों के साथ
शामे ग़ज़ल बन जाने को
पाँव भी हो रहे हैं बेताब
सुन सितारों की धुन
देख चाँद का अंदाज
बहक रहें हैं साँझ के पैगाम
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