ओ महजबीन
फ़रमान आप ए क्या सुना गयी
तोहमत कभी ख्वाबों पर
तो कभी आईने पर लगा गयी
बेजुबां थी अब तलक जो शख्शियत
दामन लफ्जों का उसे थमा गयी
बड़ी संगदिल निकली ओ महनशी
दिल अरमानों को
लफ्जों का खेल समझा गयी
ख़्वाब जो कभी पिरोए थे
तारों को उनके झंझकोर गयी
जाते जाते
नयनों की भाषा को
आप क्यों लफ्जों से तोल गयी
लफ्जों क्यों से तोल गयी
फ़रमान आप ए क्या सुना गयी
तोहमत कभी ख्वाबों पर
तो कभी आईने पर लगा गयी
बेजुबां थी अब तलक जो शख्शियत
दामन लफ्जों का उसे थमा गयी
बड़ी संगदिल निकली ओ महनशी
दिल अरमानों को
लफ्जों का खेल समझा गयी
ख़्वाब जो कभी पिरोए थे
तारों को उनके झंझकोर गयी
जाते जाते
नयनों की भाषा को
आप क्यों लफ्जों से तोल गयी
लफ्जों क्यों से तोल गयी
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