Thursday, August 17, 2017

संयोग

कैसा ऐ संयोग हैं

लंबे अंतराल बाद

किस्मत आज फ़िर उस मोड़ पे ले आयी

सोचा था जिस राह से फिर ना गुजरूँगा

ठिठक गए कदम खुद ब खुद

पास देख उस आशियाने को

फड़फड़ाने लगे यादों के पन्ने

बेचैन हो गए दिल के झरोखें

फ़िर से यादों में खो जाने को

अहसास से ऊबर

भींगी नम पलकों को जो खोला

सामने आ गया फिर वो साया

कभी बहा ले गयी थी जिसे

परिस्थितियों की हताशा

मौन उसके लफ्ज थे

पर बयां कर रही आँखें उसकी

कुछ ओर नहीं

बस कर आलिंगन जीवन अंतिम बार

हो जाऊ रुखसत दुनिया से अभी

हो जाऊ रुखसत दुनिया से अभी

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-08-2017) को "चीनी सामान का बहिष्कार" (चर्चा अंक 2701) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete