Thursday, August 24, 2017

अज़ान की दस्तक

नींद आज फ़िर उचट गयी

बातों में उनकी रात ढल गयी

जिंदगी के शोर में डूबी

रफ़्तार कुछ पल थम गयी

अज़ान की दस्तक

कहानी अधूरी छोड़ गयी

रूह की इबादत से महकी

भीनी भीनी खुश्बुएं नगमा एक नया छेड़ गयी

जाते जाते फासलों के दरम्यां  भी

जीवन रिश्ते की डोर बाँध गयी

नींद आज फ़िर उचट गयी

बातों में उनकी रात ढल गयी

नींद आज फ़िर उचट गयी 



साँझ के पैगाम

बहक रहें हैं साँझ के पैगाम

निहारुँ कैसे दरिया में आफ़ताब

नशे में चूर हैं आसमान

निखर रहा मेहताब का आब

छा रहा जैसे यौवन प्रकाश

खुल रहे मधुशाला के द्वार

कंठ भी बैचैन

बनाने मदिरा को गलहार

डूब जाए इस पहर में

करवटें बदलती रातों के साथ

शामे ग़ज़ल बन जाने को

पाँव भी हो रहे हैं बेताब

सुन सितारों की धुन

देख चाँद का अंदाज

बहक रहें हैं साँझ के पैगाम

Wednesday, August 23, 2017

खबर

ख़ुद में हम यूँ मशगूल रहे

खबर अपनों की भी ना रहीं

साँसे चल रहीं या ठहर गयी

धड़कने भी इससे अंजान रहीं

मुद्दतों बाद एक सकून मिला

ख़ुद से रूबरू हो

गुफ्तगूँ करने का अवसर जो मिला

सोचा परख लूँ

क्योँ ना फ़िर अपने आपको

दो चार दिनों बाद

कभी तो करना होगा सामना

इठलाके आती हुई साँझ से

मुलाक़ात इसलिए भी मुनासिब हैं

एक बार अपने आप से

Tuesday, August 22, 2017

राहें

राहें कुछ ऐसे गुम हो गयी

तन्हा चलते चलते मंजिल भटक गयी

पगडंडी भी कांटो का झाड़ बन गयी

अजनबी सी मानो पहचान बन गयी

चौराहों में चौराहों की जैसे राह सज गयी

कदम जिस ओर चले

तक़दीर वो राह भटक गयी

राहों की भूलभुलैया ने कायनात बदल दी

आती जाती मुड़ती राहों ने

सपनों के सौदागर की राह बदल दी

तन्हाइयों के आलम में

राहें कुछ ऐसे गुम हो गयी

ज़िंदगी खुद से अंजान हो गयी

Sunday, August 20, 2017

आनंद

उलझें रहे हम तुम सवालों में

रंगीन आसमानी नज़रों में

कभी चाँद कभी सितारें

ढूँढ रहे अपने जबाबों में

सुध बुध बस कुछ नहीं

तल्लीन वक़्त के ख्यालों में

हर हल में भी पेंच नज़र आ रहे

जैसे उलझ गए

अनसुलझे सवालों में

आनंद इसका भी अपना हैं

ब्रह्माण्ड के इन सुन्दर नज़रों में

विचलित नहीं होता मन

उलझें उलझें जबाबों से

इन पहेली बुझती राहों में

हमसफ़र बन गए हम तुम

खो रंगीन आसमानी नज़रों में

खो रंगीन आसमानी नज़रों में 

Saturday, August 19, 2017

महफ़ूज

वो अक्सर ख्यालों में ही महफ़ूज रहे

सामने जब जब आए

नजरें चुरा के चले गए

अदा उनकी यह

मन को ऐसी भा गयी

मीठा सा दर्द बन दिल में समा गयी

अल्हड़ कमसीन नादाँ उम्र कुछ समझ ना पायी

ओर इश्क़ के मर्ज से खुद को महफ़ूज रख ना पायी

स्वाभिमानी

माना ज्ञानी नहीं अज्ञानी हूँ मैं

फ़िर भी गुरुर से सराबोर रहता हूँ मैं

तिलक हूँ किसीके माथे का

महक से इसकी नाशामंद रहता हूँ मैं

नाज़ हैं ख़ुद पे बस इतना सा

अभिमानी नहीं स्वाभिमानी हूँ मैं

अपनों से फिक्रमंद नहीं रजामंद हूँ मैं

दिल की दौलत से ऐसा सजा हूँ मैं

फ़कीरी में भी अमीरी से लबरेज़ रहता हूँ मैं

ना ही मैं कोई संत हूँ ना ही कोई साधू हूँ

फ़िर भी एक सच्चा साथी हूँ मैं

क्योंकि

अभिमानी नहीं स्वाभिमानी हूँ मैं 


बेआवाज़

रातें ए बेआवाज़ नहीं

दरियाँ की क्या कोई पहचान नहीं

माना

धड़कनों के संगीत में

शोरगुल की कोई फ़रियाद नहीं

पर रातें ए भी बेआवाज़ नहीं

बड़ी मुश्किलों से कटता हैं यह सफ़र

क्योकिं बिन शोरगुल

इस जीवन की कोई पहचान नहीं

यतार्थ में सन्नाटे की चीत्कार

दिल के दरम्यां गुम होने की

कोई मिशाल नहीं

रातें ए बेआवाज़ नहीं

तोहमत

ओ महजबीन

फ़रमान आप ए क्या सुना गयी

तोहमत कभी ख्वाबों पर 

तो कभी आईने पर लगा गयी

बेजुबां थी अब तलक जो शख्शियत

दामन लफ्जों का उसे थमा गयी

बड़ी संगदिल निकली ओ महनशी

दिल  अरमानों को

लफ्जों का खेल समझा गयी

ख़्वाब जो कभी पिरोए थे

तारों को उनके झंझकोर गयी

जाते जाते

नयनों की भाषा को

आप क्यों लफ्जों से तोल गयी

लफ्जों क्यों से तोल गयी

Thursday, August 17, 2017

संयोग

कैसा ऐ संयोग हैं

लंबे अंतराल बाद

किस्मत आज फ़िर उस मोड़ पे ले आयी

सोचा था जिस राह से फिर ना गुजरूँगा

ठिठक गए कदम खुद ब खुद

पास देख उस आशियाने को

फड़फड़ाने लगे यादों के पन्ने

बेचैन हो गए दिल के झरोखें

फ़िर से यादों में खो जाने को

अहसास से ऊबर

भींगी नम पलकों को जो खोला

सामने आ गया फिर वो साया

कभी बहा ले गयी थी जिसे

परिस्थितियों की हताशा

मौन उसके लफ्ज थे

पर बयां कर रही आँखें उसकी

कुछ ओर नहीं

बस कर आलिंगन जीवन अंतिम बार

हो जाऊ रुखसत दुनिया से अभी

हो जाऊ रुखसत दुनिया से अभी

Saturday, August 5, 2017

पारदर्दिष्टा

यारों आज कल आँसू भी मुस्कराते हैं

जब कभी ऐ छलकते हैं

एक पारदर्दिष्टा रेखांकित कर जाते हैं 

ओर इस अंजुमन में

अपनों की जगह दिखला जाते हैं

दर्द के इस सफ़र की

बानगी यही हैं जानिये

इसके दर्पण में

अपने सच्चे अक्स को निहारिये

इस मुकाम की आगाज़ ही वो अल्फ़ाज़ हैं

जिक्र जिनका आंसुओ के मुस्कान में  हैं

जिक्र जिनका आंसुओ के मुस्कान में  हैं

Tuesday, August 1, 2017

कुछ पल

ऐ जिंदगी कुछ पल ठहर जा

इठलाने की उम्र अभी बाकी हैं

शरारतें अभी बहुत करनी बाकी हैं

माना दहलीज़ बचपन की गुज़र गयी

पर मुक़ाम बचपने का अब तलक बाकी हैं

यक़ीनन ठहराव उम्र को मिलेगा नहीं

लेकिन फ़िर से उस पड़ाव का छोर मिलेगा कहीं

अलविदा दुनिया को कहने से पहले

उम्मीद अब तलक ऐ बाकी हैं

वो शोखियाँ वो शरारतें

उनमें फ़िर से एक बार खो जाने का

जूनून आज भी इस उम्र पे हाबी हैं

क्या हुआ जो वक़्त गुजर गया

पर संग उसकी यादों के  जीने का

सफ़र तो अब तलक बाकी हैं

ऐ जिंदगी कुछ पल ठहर जा

इठलाने की उम्र अभी बाकी हैं