जीने के तरीक़े तलाश रहा हूँ
शायद अपने आप को संभाल रहा हूँ
ठोकर गहरी इतनी लगी
फिर उठने की कोशिश कर रहा हूँ
ना ही कोई खुदा हैं
ना ही कोई अपना हैं
जन्म मृत्यु के बीच का फासला ही
यथार्थ में कर्मों का ही रूहानी खेल हैं
आत्मसात हुआ इस ज्ञान का
जिंदगी रूबरू हुई जब अपने आप से
शायद अपने आप को संभाल रहा हूँ
ठोकर गहरी इतनी लगी
फिर उठने की कोशिश कर रहा हूँ
ना ही कोई खुदा हैं
ना ही कोई अपना हैं
जन्म मृत्यु के बीच का फासला ही
यथार्थ में कर्मों का ही रूहानी खेल हैं
आत्मसात हुआ इस ज्ञान का
जिंदगी रूबरू हुई जब अपने आप से
बहुत खूब
ReplyDelete