रिश्ते कुछ अनाम अभी बाक़ी हैं
काँटो में भी रह
गुलाब की तरह खिलने की चाह अभी बाकी हैं
फ़रियाद महक से इसकी भी वही आती हैं
रंग जब अपने रिश्तों का जुदा नहीं
अड़चन फ़िर कहा
मुझको अंगीकार करने में आती हैं
कहीं खुदगर्जी का आलम
कहीं ज़माने का डर
फ़िर भी जीवन डोर में पिरोने
कुछ अनाम रिश्ते अभी बाकी हैं
कुछ अनाम रिश्ते अभी बाकी हैं
काँटो में भी रह
गुलाब की तरह खिलने की चाह अभी बाकी हैं
फ़रियाद महक से इसकी भी वही आती हैं
रंग जब अपने रिश्तों का जुदा नहीं
अड़चन फ़िर कहा
मुझको अंगीकार करने में आती हैं
कहीं खुदगर्जी का आलम
कहीं ज़माने का डर
फ़िर भी जीवन डोर में पिरोने
कुछ अनाम रिश्ते अभी बाकी हैं
कुछ अनाम रिश्ते अभी बाकी हैं
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