Friday, July 28, 2017

तरीक़े

जीने के तरीक़े तलाश रहा हूँ

शायद अपने आप को संभाल रहा हूँ

ठोकर गहरी इतनी लगी

फिर  उठने की कोशिश कर रहा हूँ

ना ही कोई खुदा हैं

ना ही कोई अपना हैं

जन्म मृत्यु के बीच का फासला ही

यथार्थ में कर्मों का ही रूहानी खेल हैं

आत्मसात हुआ इस ज्ञान का

जिंदगी रूबरू हुई जब अपने आप से

Friday, July 21, 2017

लकीरें

ना मैं छंद पढ़ता हूँ

ना व्यंग पढ़ता हूँ

मैं तो सिर्फ़

चहरे पे लिखी लकीरें पढ़ता हूँ

हर एक रचना की

बख़ूबी ताबीर पढ़ता हूँ

तामील करता हूँ

शामिल रहे इसमें हर वो इबादत

लिखी आयतें जिसमें

सिर्फ़ ख़ुदा के नाम की हो

यारों मैं तो फकीरों की तरह

लकीरों में भी बस दुआओं का असर टटोलता हूँ

मैं तो सिर्फ़

चहरे पे लिखी लकीरें पढ़ता हूँ 


Thursday, July 20, 2017

अनाम रिश्ते

रिश्ते कुछ अनाम अभी बाक़ी हैं

काँटो में भी रह

गुलाब की तरह खिलने की चाह अभी बाकी हैं

फ़रियाद महक से इसकी भी वही आती हैं

रंग जब अपने रिश्तों का जुदा नहीं

अड़चन फ़िर  कहा

मुझको अंगीकार करने में आती हैं

कहीं खुदगर्जी का आलम

कहीं ज़माने का डर

फ़िर भी जीवन डोर में पिरोने

कुछ अनाम रिश्ते अभी बाकी हैं

कुछ अनाम रिश्ते अभी बाकी हैं

Saturday, July 8, 2017

रुख

कह दो हवाओं से

रुख बदल ले जरा

हिज़ाब उनका सरका ले जाए जरा

हुस्न जो कैद हैं इसके पीछे

आज़ाद हो जाए नक़ाब से जरा

छिपा महफ़ूज रखा जिसे

दीदार से उसके हो जाए जरा

कह दो हवाओं से

रुख बदल ले जरा




Friday, July 7, 2017

ख़ामोशी

ख़फ़ा ना होना ए ख़ामोशी तू कभी

रिश्ते सारे झूठे

एक तुझ पे ही बस ऐतबार हैं

गुफ्तगूँ तुमसे मैं कर सकूँ

दर्द मेरा तू समझ सके

लफ्ज मौन ही सही

पर रक्तरंजित ह्रदय तो खोल सकूँ

इस दर्द की दीवानगी

सिवा तेरे कोई समझ ना पायेगा

लबों पे अब लफ्ज़ सजाऊ कैसे

अल्फाज जो कल मेरे अपने थे

आज वो रूठे रूठे बेगाने से हैं

राजदार तुम ही हो इस सफ़र की

हमसफ़र बन चलते रहना

बस एक तू ही वफ़ा की ताबीर हैं

बाक़ी सब तो सिर्फ़ एक कहानी हैं

रिश्ते सारे झूठे

बस एक सच्ची तेरी यारी हैं