दुनिया कहती है तू निराकार हैं
पर मैं कहता हूँ मेरा हृदय ही तेरा आकार हैं
अहंकार नहीं यह जज्बात हैं
क्योंकि इसकी धड़कनों में
तेरी ही रूह का बास हैं
आत्मा से परमात्मा के मिलन का
यही एक सच्चा मार्ग हैं
ना मैं तपस्वी हूँ
ना ही मैं दानी हूँ
फिर भी संयम बल से ज्ञानी हूँ
इसीलिये
विधमान हैं तू इस दिल में
इस ज्ञान से मैं भी वाकिफ़ हूँ
पर मैं कहता हूँ मेरा हृदय ही तेरा आकार हैं
अहंकार नहीं यह जज्बात हैं
क्योंकि इसकी धड़कनों में
तेरी ही रूह का बास हैं
आत्मा से परमात्मा के मिलन का
यही एक सच्चा मार्ग हैं
ना मैं तपस्वी हूँ
ना ही मैं दानी हूँ
फिर भी संयम बल से ज्ञानी हूँ
इसीलिये
विधमान हैं तू इस दिल में
इस ज्ञान से मैं भी वाकिफ़ हूँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-06-2016) को "हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी" (चर्चा अंक-2649) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
nice
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