अक्सर मैं ख्यालों में खोया रहा
पहेली बन ख़ुद को टटोलता रहा
कभी सपनों की उड़ानों में
कभी उलझनों के नजारों में
पहचान ख़ुद की तलाशता फिरा
गुम रहे विचारों की ताबीर में
पर रूबरू खुद से कभी हो ना सका
उधेड़ बुन की इस कशमकश में
मैं भी शायद तन्हा खड़ा था
दुनिया की इस भीड़ में
दुनिया की इस भीड़ में
पहेली बन ख़ुद को टटोलता रहा
कभी सपनों की उड़ानों में
कभी उलझनों के नजारों में
पहचान ख़ुद की तलाशता फिरा
गुम रहे विचारों की ताबीर में
पर रूबरू खुद से कभी हो ना सका
उधेड़ बुन की इस कशमकश में
मैं भी शायद तन्हा खड़ा था
दुनिया की इस भीड़ में
दुनिया की इस भीड़ में