गुनाह मेरे ख्बाबों का कहा था
शरारत भी उनकी मासूमियत भरी थी
पेंच लड़े नयनों के थे
पतंग पर वो दिल की काट गए थे
लावण्य उनके रूप का ना था
फ़िज़ा में बहार उनके चिलमन की थी
गुलाब सी खिलती, इत्र सी महकती, हँसी उनकी
अनजाने में जुर्म ए करवा गयी
आजीवन उम्र कैद की बेड़ियाँ इन हाथों को पहना गयी
इन हाथों को पहना गयी
शरारत भी उनकी मासूमियत भरी थी
पेंच लड़े नयनों के थे
पतंग पर वो दिल की काट गए थे
लावण्य उनके रूप का ना था
फ़िज़ा में बहार उनके चिलमन की थी
गुलाब सी खिलती, इत्र सी महकती, हँसी उनकी
अनजाने में जुर्म ए करवा गयी
आजीवन उम्र कैद की बेड़ियाँ इन हाथों को पहना गयी
इन हाथों को पहना गयी