दिल के किसी कोने में यह सुगबुगाहट सी थी
अल्फाजों से अब वो गर्माहट नदारद थी
जिंदगी कभी जिसकी मुरीद हुआ करती थी
धड़कने भी वो अब बेईमानी सी थी
वो शौखियाँ वो चंचलता
लफ्जों से जैसे अब महरूम सी थी
मानो रूठी साँसे कुछ इस तरह ख़फ़ा सी थी
रूह अपनी भी जैसे अब परायी सी थी
चित भी नितांत अकेला सा था
क्योंकि
इस एकांत की ख़ामोशी तोड़ने वाली
धड़कनों का शोर भी अब जैसे मौन था
अल्फ़ाज अब उन लबों से जैसे कोशो दूर थे
अक्सर जिनपे लफ़्ज
इन धड़कनों के ही सजा करते थे
इन धड़कनों के ही सजा करते थे
अल्फाजों से अब वो गर्माहट नदारद थी
जिंदगी कभी जिसकी मुरीद हुआ करती थी
धड़कने भी वो अब बेईमानी सी थी
वो शौखियाँ वो चंचलता
लफ्जों से जैसे अब महरूम सी थी
मानो रूठी साँसे कुछ इस तरह ख़फ़ा सी थी
रूह अपनी भी जैसे अब परायी सी थी
चित भी नितांत अकेला सा था
क्योंकि
इस एकांत की ख़ामोशी तोड़ने वाली
धड़कनों का शोर भी अब जैसे मौन था
अल्फ़ाज अब उन लबों से जैसे कोशो दूर थे
अक्सर जिनपे लफ़्ज
इन धड़कनों के ही सजा करते थे
इन धड़कनों के ही सजा करते थे
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2600 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग भाई
Deleteमेरी रचना लिंक करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
मनोज