बिकती खुशियाँ अगर बाज़ार में
झोली भर मैं भी ख़रीद लाता
सुनहरे सपनों के साथ में
भटकता नहीं फिर पाने इसको
बंजारों सी उन्माद में
मिलती जो ए
मंदिर मस्जिद या शिवालय में
जाता ना कोई
कोठे या मदिरालय के पास में
समझ ना पाया कोई
कुंजी इसकी छिपी हैं
खुद रूह की बिसात में
अनजाने कशमकश की इस मार से
टूट गया खुशियों का गुलाब
अपने आप से
अपने आप से
झोली भर मैं भी ख़रीद लाता
सुनहरे सपनों के साथ में
भटकता नहीं फिर पाने इसको
बंजारों सी उन्माद में
मिलती जो ए
मंदिर मस्जिद या शिवालय में
जाता ना कोई
कोठे या मदिरालय के पास में
समझ ना पाया कोई
कुंजी इसकी छिपी हैं
खुद रूह की बिसात में
अनजाने कशमकश की इस मार से
टूट गया खुशियों का गुलाब
अपने आप से
अपने आप से
No comments:
Post a Comment