Sunday, January 15, 2017

इश्क़ ए नादाँ

अधरों पे मेरे इबादत बस एक ही सजी हैं

खुदा तू मेरा,  मौसक़ि भी तू ही हैं

कलमा गुनगुना रहा हूँ बस तेरे ही नाम का

आशिक़ी जूनून बन गयी जैसे चाह की तेरी

झुक गया  सजदे में तेरे आके मैं

कुछ और नहीं बंदगी हैं ये मेरे प्यार की  

पढ़ रही जो आयतें बस तेरे ही नाम की

एक तू ही मेरा मुकम्मल जहाँ मेरे वास्ते

तुझसे शुरू तुझ पे ही ख़त्म

रहनुमाई मेरे इश्क़ ए नादाँ की

मेरे इश्क़ ए नादाँ की




5 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

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    1. मालती जी

      शुक्रिया

      सादर
      मनोज

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  2. बहुत सुंदर रचना

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    1. मालती जी

      शुक्रिया

      सादर
      मनोज

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  3. दिलबाग भाई

    बहुत बहुत धन्यवाद्
    सादर
    मनोज

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